प्र. सन् 185 की क्रान्ति का का निश्चित समय से पहले होने के कारण
क्या परणाम सामने आए?
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Explanation:
मेरठ का विद्रोह-
पूर्व योजनानुसार 31 मार्च,1857 का दिन संपूर्ण भारत में एक साथ विद्रोह करने हेतु तय किया गया था, किन्तु दुर्भाग्य से 29 मार्च,1857 को मंगल पांडे ने विद्रोह का झंडा खङा कर दिया। यह समाचार तत्काल मेरठ पहुँचा और 10मई, 1857 को मेरठ में भी विद्रोह हो गया। इस प्रकार अपरिपक्व अवस्थामें विद्रोह करने से असफलता तो निश्चित ही थी।
सिक्खों एवं गोरखों की गद्दारी- राजपूत, सिक्ख व गोरखे अपनी वीरता के लिए विश्वविख्यात थे। कुछ इने-गिने स्थानों को छाङकर राजपूतों ने विद्रोह के प्रति उदासीनता प्रदर्शित की।सिक्खों ने ब्रिटिश साम्राज्य का समर्थन करना ही उचित समझा। सिक्ख बंगाल से,जिसने पंजाब विलय के समय अंग्रेजों का साथ दिया था, समर्थन करने को तैयार नहीं थे। अतः वे अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे। सिक्खों ने दिल्ली और लखनऊ जीतकर क्रांति की कमर ही तोङ दी।इसी प्रकार गोरखों ने अपने सेनापति जंग बहादुर की अधीनता में अवध पर आक्रमण कर अंग्रेजों की मदद की तथा भारतीयों से गद्दारी कर क्रांति को असफल बना दिया।
दक्षिण भारत की उदासीनता- नर्मदा का दक्षिण भाग पूर्णतः शांत रहा। यदि उत्तर भारत के साथ-2दक्षिण भारत भी विद्रोह में कूद पङता तो इतने विशाल क्षेत्र में फैले विद्रोह को दबाना असंभव हो जाता। विद्रोह के प्रमुख केन्द्र बिहार,अवध,रूहेलखंड, चंबल तथा नर्मदा के मध्य की भूमि एवं दिल्ली ही थे। अतः अंग्रेजों ने दक्षिण से सेनाएँ बुला ली तथा विद्रोही क्षेत्रों पर आक्रमण करके विजय प्राप्त कर ली। अंग्रेजों को बहुत ही सीमित क्षेत्र में विद्रोह का सामना करना पङा। इस प्रकार दक्षिण भारत की उदासीनता अंग्रेजों के लिए वरदान सिद्ध हुई। इसलिए अंग्रेज,निजाम और सिधिंया का नाम कृतज्ञता से लेते रहे।