प्रातः काल पर अनुछेद
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प्रातः काल का दृश्य दिन के सभी दृश्य के मुकाबले में अधिक मनोहर और मन मोह लेने वाला होता है। रात के बाद जब उषा की मधुर मुस्कान उत्पन्न होती है वो हमारे ह्रदय को जीत लेने वाली मुस्कान होती है। धरती के कण-कण में नया उल्लास और उमंग छा जाती है। ऐसे समय में भ्रमण करना बहुत ही लाभकारी होता है।
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संसार का हर व्यक्ति सदैव सुखी रहकर दीर्घजीवी बनना चाहता है । केवल पौष्टिक भोजन करके मनुष्य सुखी नही रह सकता । अच्छे मकानो व शान शौकत से रहकर मानव सुखी नही रह सकता ।
सुखी रहने के लिए स्वस्थ शरीर की आवश्यकता होती है, क्योकि सुख व आनन्द किसी भी बाहरी वस्तु से प्राप्त नहीं होते है, वे तो अपने हृदय से ही प्राप्त किये जा सकते हैं । शरीर स्वस्थ न रहने से मन अशान्त रहता है, मनुष्य का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है ।
सर्व-सम्पन्न रहते हुए भी अस्वस्थ शरीर में कोई भी शान्ति प्राप्त नहीं कर सकता । स्वस्थ शरीर के लिए व्यायाम, भ्रमण, श्रम की आवश्यकता होती है । प्रातःकाल का भ्रमण शरीर को स्वस्थ रखने में काफी सहायक होता है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन प्रात: भ्रमण करना चाहिए ।
प्रातःकालीन भ्रमण का महत्त्व:
प्रात: काल के भ्रमण का महत्त्व केवल इसलिए नहीं होता है की वातावरण मनोरम होता है । मन्द-मन्द शीतल समीर हृदय में अत्यन्त आहाद पैदा करती है । चन्द्रमा अपने स्वच्छ प्रकाश के साथ तारागणो सहित ओझल होने जा रहा होता है । पूर्व दिशा की लालिमा बाल अरुण के उदय होने का संकेत दे रही है ।
पक्षियों का कलरव चित्ताकर्षक होता है । सुबह की वायु एक प्रकार की अमृत है । पूर्व दिशा में लाल पक्षी की तरह या काँसे के थाल सदृश बाल रवि, उदय की ओर बढ़ रहा है । कमल, सूर्य-कमल खिल रहे हैं । उपवनों की शोभा द्विगणित हो रही है । उस समय का दृश्य किसको मोहित नहीं करता है । कवि हृदय खिल पड़ता है । हिलोरे लेने लगता है । फूट पड़ती है कमनीय कल्पना कविता बनकर ।
प्रातःकालीन भ्रमण व्यायाम का अंग-प्रात-काल का भ्रमण भी एक प्रकार का व्यायाम है । शरीर को स्वस्थ रखने के लिये व्यायाम आवश्यक है । भ्रमण करने से व्यायाम के सारे लाभ प्राप्त होते हैं । प्रात: उठकर मनुष्य जब घूमने के लिए निकलता है उस समय उसके शरीर के प्रत्येक अवयव क्रियाशील हो जाते हैं ।
व्यायाम के अन्य साधनों से शरीर का कोई विशिष्ट अंग ही प्रभावित होता है परन्तु भ्रमण से शरीर के प्रत्येक अगों में गति पैदा होती है । प्रातःकालीन भ्रमण में हाथ- की कसरत होती है । फेफडें को शुद्ध वायु प्राप्त होती है । कई लोग भ्रमण करते हुए दौड़ भी लगाते हैं । वह भी व्यायाम का ही एक अंग है है ।
प्रात: कालीन भ्रमण का महत्त्व:
प्रातःकाल के भ्रमण का महत्व केवल इसलिए नहीं होता है कि उससे व्यायाम के लाभ प्राप्त होते हैं । प्रातःकाल की वायु शरीर के लिए अमृत के समान कार्य करती है । प्रात: के म्रमण में शुद्ध वायु का सेवन होता है । आजकल वायु प्रदूषण इतना अधिक हो गया है कि श्वास में प्रतिपल दूषित वायु शरीर के अन्दर जाती है, जिससे शरीर को काफी क्षति पहुंचती है ।
परन्तु प्रातःकाल की वायु में कोई प्रदूषण नहीं रहता है । सुबह की वायु शुद्ध व शीतल होती है । उसके सेवन से शुद्ध वायु शरीर में प्रवेश करती है जिससे विविध प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं । प्रातःकाल के भ्रमण से मन में आह्लाद व शरीर में स्फूर्ति आती है ।
प्रातःकाल का भ्रमण मनुष्य को शारीरिक व मानसिक दोनो ही प्रकार से लाभकारी है । प्रात: के दृश्य इतने रमणीय होते हैं कि मन देख व सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हो जाता है । प्रातःकाल के भ्रमण से हमारा मनोरंजन भी होता है और स्वास्थ्य लाभ भी ।
प्रातःकाल के भ्रमण करने वाले व्यक्ति को किसी प्रकार की आधि व व्याधि नहीं सताते है । प्रसन्नचित्त होने से काम में मन लगा रहता है । स्वभाव में मधुरता व दिल में शान्ति रहती है । उसके दिन भर के कार्य बड़े आनन्द से सम्पन्न होते है । प्रातःकाल के भ्रमण से ज्ञान में वृद्धि होती है, बुद्धि में ताजगी आती है, स्मरण शक्ति तीब्र हो जाती है ।
भ्रमण के स्थल:
प्रात: काल के भ्रमण के लिए बड़ा रमणीस स्थान होना चाहिए । गन्दे स्थलो में, गलियों में, कल-कारखानो के पास व जन-कोलाहल में घूमना लाभप्रद नंही है । प्रातःकाल के हमण के लिए वन-उपवन जहाँ रंग-बिरंगे फूल खिले हो, वृक्षों के झुरमुट हवा से हिल रहे हों, वह स्थान अत्यन्त लाभदायक हैं ।
वृक्ष प्रात: ओंक्सीजन छोड़ते हैं । फूल से मन्द-मन्द सुगन्धि निकलती है, जिसके सेवन से हृदय के अनेक विकार दूर होते हैं । नदी का तट और भी अधिक सुहावना होता है, जहाँ कल-कल करती हुई नदी की ध्वनि मन को मोहित करती है ।
पक्षीयों का कलरव वातावरण में मधुरता घोल देता है । नदी के तट पर किसी प्रकार का वायु-प्रदूषण नहीं होता है । इसलिए वायु-प्रदूषण व ध्वनि-प्रदूषण से दूर एकान्त उपवन, वन, नदी का तट, हरियाले खेत भ्रमण के लिए उपयुक्त माने गये हैं ।
कुछ सुझाव:
प्रत्येक व्यक्ति को प्रात: ब्रह्म महूर्त में उठना चाहिए । कई व्यक्तियों को प्रात: बिस्तरा छोड़ने में बड़ी आलस्यता होती है, इसलिए आलस्यता का परित्याग कर जल्दी उठना चाहिए । उठकर शौचादि, नित्य कर्मो से निवृत होना चाहिए । उसके बाद भ्रमण के लिए चल पड़ना चाहिए ।
भ्रमण करते समय लम्बी-लम्बी श्वास लेनी चाहिए । वनों व उपवनों में सुगन्धित वायु को लम्बी-लम्बी श्वास खींच कर सेवन करना चाहिए । शरीर में और अधिक चुस्ती लाने के लिए दौड़ लगाना लाभप्रद है । परन्तु जो व्यक्ति रोगी है या अभी रोग से मुक्त हुआ है, उसे दौड़ न लगाकर धीरे-धीरे भ्रमण करना चाहिए ।
वर्षा के दिन, आंधी तूफान के दिन, सर्दी-जुकाम होने पर, किसी प्रकार के शारीरिक रोग की अवस्था में प्रातःकाल का भ्रमण करना लाभप्रद नही है ।
उपसंहार:
यदि हम चाहे कि जीवन में रोगों से मुक्त रहे, कभी औषधि का सेवन न करें तो हमें प्रतिदिन प्रातःकाल भ्रमण के लिए जाना चाहिए । प्रातःकाल का वातावरण व वायु एक प्रकार की औषधि है ।
सुखी रहने के लिए स्वस्थ शरीर की आवश्यकता होती है, क्योकि सुख व आनन्द किसी भी बाहरी वस्तु से प्राप्त नहीं होते है, वे तो अपने हृदय से ही प्राप्त किये जा सकते हैं । शरीर स्वस्थ न रहने से मन अशान्त रहता है, मनुष्य का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है ।
सर्व-सम्पन्न रहते हुए भी अस्वस्थ शरीर में कोई भी शान्ति प्राप्त नहीं कर सकता । स्वस्थ शरीर के लिए व्यायाम, भ्रमण, श्रम की आवश्यकता होती है । प्रातःकाल का भ्रमण शरीर को स्वस्थ रखने में काफी सहायक होता है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन प्रात: भ्रमण करना चाहिए ।
प्रातःकालीन भ्रमण का महत्त्व:
प्रात: काल के भ्रमण का महत्त्व केवल इसलिए नहीं होता है की वातावरण मनोरम होता है । मन्द-मन्द शीतल समीर हृदय में अत्यन्त आहाद पैदा करती है । चन्द्रमा अपने स्वच्छ प्रकाश के साथ तारागणो सहित ओझल होने जा रहा होता है । पूर्व दिशा की लालिमा बाल अरुण के उदय होने का संकेत दे रही है ।
पक्षियों का कलरव चित्ताकर्षक होता है । सुबह की वायु एक प्रकार की अमृत है । पूर्व दिशा में लाल पक्षी की तरह या काँसे के थाल सदृश बाल रवि, उदय की ओर बढ़ रहा है । कमल, सूर्य-कमल खिल रहे हैं । उपवनों की शोभा द्विगणित हो रही है । उस समय का दृश्य किसको मोहित नहीं करता है । कवि हृदय खिल पड़ता है । हिलोरे लेने लगता है । फूट पड़ती है कमनीय कल्पना कविता बनकर ।
प्रातःकालीन भ्रमण व्यायाम का अंग-प्रात-काल का भ्रमण भी एक प्रकार का व्यायाम है । शरीर को स्वस्थ रखने के लिये व्यायाम आवश्यक है । भ्रमण करने से व्यायाम के सारे लाभ प्राप्त होते हैं । प्रात: उठकर मनुष्य जब घूमने के लिए निकलता है उस समय उसके शरीर के प्रत्येक अवयव क्रियाशील हो जाते हैं ।
व्यायाम के अन्य साधनों से शरीर का कोई विशिष्ट अंग ही प्रभावित होता है परन्तु भ्रमण से शरीर के प्रत्येक अगों में गति पैदा होती है । प्रातःकालीन भ्रमण में हाथ- की कसरत होती है । फेफडें को शुद्ध वायु प्राप्त होती है । कई लोग भ्रमण करते हुए दौड़ भी लगाते हैं । वह भी व्यायाम का ही एक अंग है है ।
प्रात: कालीन भ्रमण का महत्त्व:
प्रातःकाल के भ्रमण का महत्व केवल इसलिए नहीं होता है कि उससे व्यायाम के लाभ प्राप्त होते हैं । प्रातःकाल की वायु शरीर के लिए अमृत के समान कार्य करती है । प्रात: के म्रमण में शुद्ध वायु का सेवन होता है । आजकल वायु प्रदूषण इतना अधिक हो गया है कि श्वास में प्रतिपल दूषित वायु शरीर के अन्दर जाती है, जिससे शरीर को काफी क्षति पहुंचती है ।
परन्तु प्रातःकाल की वायु में कोई प्रदूषण नहीं रहता है । सुबह की वायु शुद्ध व शीतल होती है । उसके सेवन से शुद्ध वायु शरीर में प्रवेश करती है जिससे विविध प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं । प्रातःकाल के भ्रमण से मन में आह्लाद व शरीर में स्फूर्ति आती है ।
प्रातःकाल का भ्रमण मनुष्य को शारीरिक व मानसिक दोनो ही प्रकार से लाभकारी है । प्रात: के दृश्य इतने रमणीय होते हैं कि मन देख व सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हो जाता है । प्रातःकाल के भ्रमण से हमारा मनोरंजन भी होता है और स्वास्थ्य लाभ भी ।
प्रातःकाल के भ्रमण करने वाले व्यक्ति को किसी प्रकार की आधि व व्याधि नहीं सताते है । प्रसन्नचित्त होने से काम में मन लगा रहता है । स्वभाव में मधुरता व दिल में शान्ति रहती है । उसके दिन भर के कार्य बड़े आनन्द से सम्पन्न होते है । प्रातःकाल के भ्रमण से ज्ञान में वृद्धि होती है, बुद्धि में ताजगी आती है, स्मरण शक्ति तीब्र हो जाती है ।
भ्रमण के स्थल:
प्रात: काल के भ्रमण के लिए बड़ा रमणीस स्थान होना चाहिए । गन्दे स्थलो में, गलियों में, कल-कारखानो के पास व जन-कोलाहल में घूमना लाभप्रद नंही है । प्रातःकाल के हमण के लिए वन-उपवन जहाँ रंग-बिरंगे फूल खिले हो, वृक्षों के झुरमुट हवा से हिल रहे हों, वह स्थान अत्यन्त लाभदायक हैं ।
वृक्ष प्रात: ओंक्सीजन छोड़ते हैं । फूल से मन्द-मन्द सुगन्धि निकलती है, जिसके सेवन से हृदय के अनेक विकार दूर होते हैं । नदी का तट और भी अधिक सुहावना होता है, जहाँ कल-कल करती हुई नदी की ध्वनि मन को मोहित करती है ।
पक्षीयों का कलरव वातावरण में मधुरता घोल देता है । नदी के तट पर किसी प्रकार का वायु-प्रदूषण नहीं होता है । इसलिए वायु-प्रदूषण व ध्वनि-प्रदूषण से दूर एकान्त उपवन, वन, नदी का तट, हरियाले खेत भ्रमण के लिए उपयुक्त माने गये हैं ।
कुछ सुझाव:
प्रत्येक व्यक्ति को प्रात: ब्रह्म महूर्त में उठना चाहिए । कई व्यक्तियों को प्रात: बिस्तरा छोड़ने में बड़ी आलस्यता होती है, इसलिए आलस्यता का परित्याग कर जल्दी उठना चाहिए । उठकर शौचादि, नित्य कर्मो से निवृत होना चाहिए । उसके बाद भ्रमण के लिए चल पड़ना चाहिए ।
भ्रमण करते समय लम्बी-लम्बी श्वास लेनी चाहिए । वनों व उपवनों में सुगन्धित वायु को लम्बी-लम्बी श्वास खींच कर सेवन करना चाहिए । शरीर में और अधिक चुस्ती लाने के लिए दौड़ लगाना लाभप्रद है । परन्तु जो व्यक्ति रोगी है या अभी रोग से मुक्त हुआ है, उसे दौड़ न लगाकर धीरे-धीरे भ्रमण करना चाहिए ।
वर्षा के दिन, आंधी तूफान के दिन, सर्दी-जुकाम होने पर, किसी प्रकार के शारीरिक रोग की अवस्था में प्रातःकाल का भ्रमण करना लाभप्रद नही है ।
उपसंहार:
यदि हम चाहे कि जीवन में रोगों से मुक्त रहे, कभी औषधि का सेवन न करें तो हमें प्रतिदिन प्रातःकाल भ्रमण के लिए जाना चाहिए । प्रातःकाल का वातावरण व वायु एक प्रकार की औषधि है ।
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