Hindi, asked by shilpakatare54, 2 months ago

पुरातात्विक का महत्व पौराणिक का महत्व ​

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Answered by jha60617
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पुरातात्विक महत्व के स्थलों के मामले में बिहार बहुत ही समृद्ध है। इतनी बड़ी संपदा है हमारे पास पर सही अर्थो में इसका दोहन नहीं हुआ है। इसकी पुरजोर तरीके से मार्केटिंग होनी चाहिए। अन्य राज्यों के मुकाबले इसे यहां पर अधिक महत्व नहीं दिया गया है। हर आठ से दस किलोमीटर पर एक ऐतिहासिक महत्व के स्थल मिल जाएंगे। इनमें कई उत्कृष्ट आ*++++++++++++++++++++++++++++र्*टेक्चर के मिसाल हैं। ईसा पूर्व तीन-चार सदी से लेकर सत्रहवीं-अठारवीं सदी के स्मारक हैं यहां।ड्ढr भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, पटना अंचल के अधीक्षण पुरातत्वविद् डा. फणीकांत मिश्र ने शनिवार को बिहार पुराविद् परिषद द्वारा ‘बिहार के प्राचीन स्मारक व उनके संरक्षण की समस्या ’ विषय पर सारगर्भित व्याख्यान देते हुए उक्त बातें कहीं।ड्ढr ड्ढr अध्यक्षता डा. युवराज देव प्रसाद ने की। परिषद के महासचिव उमेश चंद्र द्विवेदी ने स्वागत भाषण किया। पुरातत्ववेत्ता डा. मिश्र ने कहा कि पुरातात्विक संरक्षण एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है व स्मारकों का संरक्षण केवल पुरातत्ववेताओं की देखरेख में ही होनी चाहिए। इस क्रम में उन्होंने नालंदा महाविहार, विक्रमशिला विश्वविद्यालय, राजगीर का मनियारमठ, कुम्हरार का आरोग्य विहार, बराबर व नागाजरुनी पहाड़ की गुफाओं, पथरघट्टा की गुफाएं, जीरादेई स्थित डा.राजेन्द्र प्रसाद के पैतृक निवास,कोंच का शिव मंदिर, राजगीर का सायक्लोपियन दीवार, कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय, गया का महाबोधि मंदिर की चर्चा करते हुए बताया कि कैसे इन स्मारकों का संरक्षण किया जा रहा है।ड्ढr ड्ढr असहयोग आंदोलन में तवायफों की महती भूमिका रही थी : गजेन्दड्र्ढr पटना (का.सं.)। अवध के नवाब वाजिद अली शाह की रचना ‘बाबुल मोरा नैहर छूटल जाओ’ व अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की ‘दो गज जमीन भी न मिली ’ वतनपरस्ती की उम्दा मिसाल है। ये दोनों जितने बढ़िया संगीतज्ञ थे उतने ही बड़े देशभक्त भी। अगर उन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया होता तो उन्हें उतनी यातना नहीं झेलनी पड़ती जितनी उन्होंने झेली। उस जमाने की गणिकाओं (तवायफों) ने भी सुरमाओं की तरह अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ी थी। इन वीरांगना तवायफों का नाम कहीं भी किसी इतिहास में दर्ज नहीं है। श्री सिंह शनिवार को पटना संग्रहालय द्वारा ‘स्वतंत्रता आंदोलन में संगीतकारों की भूमिका(1857-1’ विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। अध्यक्षता नृत्य गुरु हरि उप्पल ने की। संग्रहालय के अपर निदेशक सहदेव कुमार ने स्वागत भाषण किया। संगीत के मूर्धन्य विद्वान श्री सिंह ने कहा कि आजादी की लड़ाई में संगीत के मर्मज्ञ राजाओं व नवाबों के अलावा तवायफों व विशुद्ध संगीतज्ञों ने भी महती भूमिका निभायी थी। तवायफों की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि गांधी के असहयोग आंदोलन में बनारस की गणिकाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। हुस्ना बाई ने बनारस में इस आंदोलन की अगुआई की व तवायफों से देशभक्ित गीत गाने को कहा। ललिता बाई ने कांग्रेस के लिए चंदा जमा किए। कानपुर की अजीजन बाई ने नाना साहब का सहयोग ही नहीं किया बल्कि अंग्रेजों की जासूसी भी की

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