प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्माद् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।।
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मीठे वाणी बोलने से सभी व्यक्ति प्रसन्न और संतुष्ट होते हैं इसलिए सदैव मधुर वचन ही बोलने चाहिए। वाणी हमारे अधीन है और इसका कोई मुल्य भी नहीं देना पड़ता तो मीठे वचन बोलने में दरिद्रता कैसी ?
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प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्माद् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।।
अर्थ : प्रिय वाक्य यानी मीठी वाणी बोलने से सभी प्रसन्न होते हैं, इसलिए सदैव मीठी वाणी बोलने का प्रयत्न करना चाहिए। मीठी वाणी बोलने से कौन सी निर्धनता आ जाती है।
व्याख्या : कहने का तात्पर्य यह है कि सदैव विनम्र होकर मधुर भाषी रहना चाहिए और सबसे मीठी वाणी में बात करनी चाहिए। मीठी वाणी बोलने वाले व्यक्ति को सभी व्यक्ति पसंद करते हैं और सब उसका सही उत्तर देते हैं। किसी से विनम्र होकर मीठी वाणी बोलने से कोई निर्धनता नहीं आ जाती बल्कि मन प्रसन्न ही रहता है, क्योंकि उसका हमें सकारात्मक परिणाम जो प्राप्त होता है।