प्रभु जी तुम मोती हम धागा। जैसे सोनहिं मिलत सोहागा।
प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा । ऐसी भक्ति करै रैदासा।।
(2) नरहरि चंचल मति मोरी।
कैसे भगति करौं मैं तोरी।।
तू मोहि देखै, हौँ तोहि देखू, प्रीति परस्पर होई।
तू मोहि देखै, हौँ तोहि न देखू, इहि मति सब बुधि खोई।।
सब घट अंतरि रमसि निरंतरि, मैं देखत हूँ नहीं जाना।
गुन सब तोर मोर सब औगुन, क्रित उपकार न माना।।
मैं तें तोरि मोरि असमझ सों, कैसे करि निसतारा।
कहै 'रैदास' कृस्न करुणांमैं, जै जै जगत अधारा।।
3) अविगत नाथ निरंजन देवा।
मैं का जानूं तुम्हरि सेवा।।
बांधून बंधन छांऊँ न छाया, तुमही सेऊँ निरंजन राया।
चरन पताल सीस असमाना, सो ठाकुर कैसैं संपटि समान
सिव सनकादिक अंत न पाया, खोजत ब्रह्मा जनम गंवाया
तो, न पाती पूजौं न देवा, सहज समाधि करौं हरि सेवा।
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चल के साथ वीडियो अपलोड है तो वो भी है कि हम भ्रष्टाचार से ही कुछ हार गई कि इस तरह है और इसका भी नहीं करते
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