प्रगति और विकास की तरफ बढ़ता भारत निबंध इन हिंदी
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पृथ्वी के सम्पूर्ण प्राकृतिक जीवन का सर्वांगीण शोषण करने वाले त्रिविध प्रदूषणों का स्वरूप हमने यहाँ तक देखा। इस प्राकृतिक जीवन में मानव के साथ पशु-पक्षी, कीट, वृक्ष, जल-स्थल-वायु-आकाश-इन सभी से मिलकर बना हुआ पर्यावरण सहस्त्रों वर्षों से सुरक्षित और सन्तुलित रहता आया है। उसकी निर्मल और निरामय अवस्था विकास की विकृत अवधारणा के कारण नींव से लेकर ऊपर तक हिल गई है।
मनुष्य के अहं-केन्द्रित व्यवहार का परिणाम अखिल दुनिया को भुगतना पड़ रहा है। स्वयं के साथ सबका विनाश करवाने वाले भस्मासुर की कहानी संकट परम्परा को निमंत्रित करने वाले आधुनिक विकास के नाम से मानो मूर्तिमान हो गई है। ऐसे विकास के आधारभूत मूल्य कौन से हैं, यह देखना भी शिक्षाप्रद होगा।
इस विकास का प्रथम मूल्य है : धरती के जीवन का केन्द्र है मानव। मनुष्य की सुख-सुविधा के लिये शेष सारी सृष्टि है। इसलिये अपने उपभोग के खातिर जीव-जन्तुओं के सहित समूचा अस्तित्व ही नदी, सागर, पर्वत, वृक्ष, खनिज सम्पदा, जमीन, आसमान अपने लिये मनुष्य इस्तेमाल कर सकता है। इनका शोषण करने का, इन्हें नष्ट करने का अधिकार भी मनुष्य को है। स्व-पराक्रम से मानव अपनी बुद्धि का अमर्याद विकास कर सकता है। अपनी बुद्धि शक्ति के बल पर अखिल विश्व के प्राकृतिक आविष्कारों पर वह विजय प्राप्त कर सकता है।
ऐसे विजयी वीर मानव द्वारा बनाई हुई यंत्र-मानव की बुद्धि प्रकृति-प्रदत्त मानवी बुद्धि से अनेक गुना अधिक कार्य क्षण-भर में कर सकती है। लंदन की एक प्रदर्शनी में कोने में खड़े रोबो (यंत्र-मानव) ने अपने भाषण में कहा था- ‘आप मनुष्य मूर्ख होते हैं, आप गलतियाँ करते हैं, हम कभी गलती नहीं करते!’ यह यंत्र-मानव मात्र गणित में पारंगत नहीं है, वह चित्रकारी कर सकता है, काव्य-निर्मिति भी करता है और आपके भावी काल का स्वरूप भविष्य कथन भी कर सकता है। मनुष्य की सब प्रकार की सेवा करने वाला, बिल्कुल शिकायत न करने वाला, कहो सो काम करने वाला, आज्ञाधारक नौकर मनुष्य समाज में कहीं मिल सकेगा?
मानव की नैसर्गिक मस्तिष्क शक्ति दोयम दर्जे के कम्प्यूटर के जितनी ही होती है। इसलिये त्वरित कार्य करने वाले, समय का हिसाब न करने वाले नित्य तत्पर कम्प्यूटर ने सभी ऑफिसों में महत्त्वपूर्ण कार्य-कलापों के लिये अपना स्थान पक्का कर लिया हो तो आश्चर्य कैसा? विकसित देशों के समान विकासशील देशों में भी समाज में हताशा ग्रस्त बेरोजगार युवा-वर्ग को नजरअन्दाज करके कम्प्यूटर को अग्रस्थान दिया गया है। क्योंकि विकास की वैश्विक स्पर्धा में कम्प्यूटर के सिवा टिकना सम्भव ही नहीं होगा।
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