प्रगतिवादी युग की प्रमुख प्रवृत्तियों ( विशेषताओं ) पर प्रकाश डालिए ।
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समाज और समाज से जुड़ी समस्याओं यथा गरीबी,अकाल,स्वाधीनता,किसान-मजदूर,शोषक-शोषित संबंध और इनसे उत्पन्न विसंगतियों पर जितनी व्यापक संवेदनशीलता इस धारा की कविता में है,वह अन्यत्र नहीं मिलती। यह काव्यधारा अपना संबंध एक ओर जहां भारतीय परंपरा से जोड़ती है वहीं दूसरी ओर भावी समाज से भी। वर्तमान के प्रति वह आलोचनात्मक यथार्थवादी दृष्टि अपनाती है। प्रगतिवादी काव्यधारा की प्रमुख प्रवृत्तियां इस प्रकार हैं:-
1. सामाजिक यथार्थवाद : इस काव्यधारा के कवियों ने समाज और उसकी समस्याओं का यथार्थ चित्रण किया है। समाज में व्याप्त सामाजिक,आर्थिक,धार्मिक,राजनीतिक विषमता के कारण दीन-दरिद्र वर्ग के प्रति सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि के प्रसारण को इस काव्यधारा के कवियों ने प्रमुख स्थान दिया और मजदूर,कच्चे घर,मटमैले बच्चों को अपने काव्य का विषय चुना।
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प्रगतिशील युग के प्रमुख रुझान (विशेषताएं):
प्रगतिशील युग की विशेषताओं में सरकार की शुद्धि, आधुनिकीकरण, परिवार और शिक्षा पर ध्यान देना, निषेध और महिलाओं के मताधिकार शामिल हैं।
प्रगतिवाद की विशेषताओं में शहरी-औद्योगिक समाज के प्रति एक अनुकूल दृष्टिकोण, मानव जाति की क्षमता में सुधार, पर्यावरण और जीवन की स्थितियों में सुधार, आर्थिक और सामाजिक मामलों में हस्तक्षेप करने के दायित्व में विश्वास, विशेषज्ञों की क्षमता में विश्वास और दक्षता में शामिल थे। सरकार।