प्रज्ञ47:अब्राहम लिंकन का पत्र किस
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अब्राहम लिंकन का पत्र : अपने पुत्र के शिक्षक के नाम
हे शिक्षक!
मैं जानता हूं और मानता हूं
कि न तो हर व्यक्ति सही होता है
और न ही होता हैं सच्चा
किंतु तुम्हें सिखाना होगा कि
कौन बुरा है और कौन अच्छा।
Abrham Lincon
दुष्ट व्यक्तियों के साथ-साथ आदर्श प्रणेता भी होते हैं,
स्वार्थी राजनीतिज्ञों के साथ-साथ समर्पित नेता भी होते हैं
दुश्मनों के साथ-साथ मित्र भी होते हैं,
हर विरूपता के साथ सुन्दर चित्र भी होते हैं।
समय भले ही लग जाए, पर
यदि सिखा सको तो उसे सिखाना
कि पाए हुए पांच से अध्कि मूल्यवान है –
स्वयं एक कमाना।
पाई हुई हार को कैसे झेले, उसे यह भी सिखाना
और साथ ही सिखाना, जीत की खुशियां मनाना।
यदि हो सके तो उसे ईष्र्या या द्वेष से परे हटाना
और जीवन में छिपी मौन मुस्कान का पाठ पठाना।
जितनी जल्दी हो सके उसे जानने देना
कि दूसरों को आतंकित करने वाला स्वयं कमजोर होता है,
वह भयभीत व चिंतित है
क्योंकि उसके मन में स्वयं चोर होता है।
उसे दिखा सको तो दिखाना –
किताबों में छिपा खजाना।
और उसे वक्त देना चिंता करने के लिए
कि आकाश के परे उड़ते पंछियों का आह्लाद,
सूर्य के प्रकाश में मध्ुमक्खियों का निनाद,
हरी-भरी पहाडि़यों से झांकते पफूलों का संवाद,
कितना विलक्षण होता है – अविस्मरणीय, अगाध्
उसे यह भी सिखाना –
धेखे से सफलता पाने से असपफल होना सम्माननीय है।
और अपने विचारों पर भरोसा रखना अध्कि विश्वसनीय है।
चाहें अन्य सभी उनको गलत ठहरायें
परंतु स्वयं पर अपनी आस्था बनी रहे यह विचारणीय है।
उसे यह भी सिखाना कि वह सदय के साथ सदय हो,
किंतु कठोर के साथ हो कठोर।
और लकीर का फकीर बनकर,
उस भीड़ के पीछे न भागे जो करती हो – निरर्थक शोर।
उसे सिखाना
कि वह सबकी सुनते हुए अपने मन की भी सुन सके,
हर तथ्य को सत्य की कसौटी पर कसकर गुन सके।
यदि सिखा सको तो सिखाना कि वह दुःख में भी मुस्कुरा सके,
घनी वेदना से आहत हो, पर खुशी के गीत गा सके।
उसे यह भी सिखाना कि आंसू बहते हों तो उन्हें बहने दे,
इसमें कोई शर्म नहीं ़ ़ ़ कोई कुछ भी कहता हो ़ ़ ़ कहने दे।
उसे सिखाना –
वह सनकियों को कनखियों से हंसकर टाल सके
पर अत्यन्त मृदुभाषी से बचने का ख्याल रखे।
वह अपने बाहुबल व बु(िबल का अध्कितम मोल पहचान पाए
परंतु अपने हृदय व आत्मा की बोली न लगवाए।
वह भीड़ के शोर में भी अपने कान बन्द कर सके
और स्वतः की अंतरात्मा की सही आवाज सुन सकेऋ
सच के लिए लड़ सके और सच के लिए अड़ सके।
उसे सहानभूति से समझाना
पर प्यार के अतिरेक से मत बहलाना।
क्योंकि तप-तप कर ही लोहा खरा बनता है,
ताप पाकर ही सोना निखरता है।
उसे साहस देना ताकि वक्त पड़ने पर अध्ीर बने
सहनशील बनाना ताकि वह वीर बने।
उसे सिखाना कि वह स्वयं पर असीम विश्वास करे,
ताकि समस्त मानव जाति पर भरोसा व आस ध्रे।
यह एक बड़ा-सा लम्बा-चैड़ा अनुरोध् है
पर तुम कर सकते हो, क्या इसका तुम्हें बोध् है?
मेरे और तुम्हारे ़ ़ ़ दोनों के साथ उसका रिश्ता हैऋ
सच मानो, मेरा बेटा एक प्यारा-सा नन्हा सा पफरिश्ता है!