३."प्रजातंत्र अज्ञानी और बुद्धिहीन व्यक्तियों का शासन है " यह कथन किसने कह
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प्रसिद्ध आइरिश लेखक, पत्रकार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने प्रजातंत्र की व्याख्या कुछ इसी तरह से की है. प्रजातंत्र मूर्खों का, मूर्खों के लिए, मूर्खों द्वारा शासन.
आज हमारे देश में जिस तरीके से संप्रग सरकार ने माहौल बना रखा है शायद इसी बात की कल्पना कर ही प्रजातंत्र को ऐसे पारिभाषित की गयी है. प्रजातंत्र में प्रत्येक व्यक्ति के वोट की कीमत आँकी जाती है और उसके गणना के हिसाब से ही सरकारें बना करती है. वोट देने वालों में अधिकांश लोग राजनीति से बिल्कुल अनजान होते हैं, उन्हें पता हीं नहीं होता कि हम कैसी सरकार बना रहे हैं और ना ही वे जानने का प्रयास ही करते हैं. अधिकांश लोगों के जेहन में तत्कालिक घटनाक्रम ही अंकित होता है और उसी आधार पर ही सरकार बनाने के प्रयास किए जाते हैं, मतलब की इस मामले में जनता की मेमोरी बहुत ही छोटी होती है. चुनाव के समय जो मुद्दा सबसे ज़्यादा चर्चित होता है, जो जनता के विचार को झकझोरता हो उसी मुद्दे को आधार बना कर ही जनता अपने वोट का निर्धारण करती है. ऐसे में ही सर्वाधिक ग़लत निर्णय लिए जाते हैं इसलिए ये मूर्खों का शासन कहलाता हैं.
जनभावनाओं के ज्वार पर बनने वाली सरकारें भी अच्छी तरह से जानती हैं कि जिस मुद्दे के आधार पर हमारी सरकारें बनी हैं वो मुद्दा कुछ समय बाद ही जनता के दिमाग़ से निकल जाएगा और फिर वे भी अपनी मनमानी पर उतर आते हैं और जनता बाद में ठगी सी महसूस करती रह जाती है. उदाहरण के तौर पर वर्तमान की संप्रग सरकार और हम भोले-भाले जनता. इसलिए इसे मूर्खों के लिए शासन कहा गया है.
हमारे देश के संबिधान के तहत किसी सरकार की समय सीमा पाँच वर्ष अधिकतम तय की गयी है. सरकार जो कि बन जाने के बाद पाँच वर्ष तक उसी भोली-भली जनता को भटकाने का प्रयास शुरू कर देती है. जनता द्वारा चुने गये सांसद, विधायक, मंत्री आदि अपनी मनमानी पर उतर आते हैं जिसका तरोताजा उदाहरण आप उत्तर प्रदेश में देख सकते हैं. साथ ही संप्रग सरकार की मनमानी तो हम देख ही रहे हैं. इनकी मनमानी इस कदर मूर्खतापूर्ण होती है जैसे ये कभी सरकार से हटेंगे ही नहीं. सरकारें बनाने वाली पार्टी भूल जाती है कि पाँच सालों के बाद फिर से उन्हें उसी जनता दरबार में भीख माँगने जाना होता है जहाँ अगले पाँच सालों का भविष्य निर्धारण होना होता है. उन्हें इस बात का भान तब होता है जब अगले चुनाव का नतीजा उनके खिलाफ जाता है और फिर जनता के सामने वे ठगे महसूस करते हैं, जैसा कि मायावती की सरकार अभी महसूस कर रही है इसलिए इसे मूर्खों द्वारा शासन भी कहते हैं.
लेकिन इस परिभाषा को दरकिनार कर इसे ग़लत भी साबित किया जा सकता है और उसके लिए ज़रूरत होती है एक जिजीविषा की. एक विशुद्ध समाज के निर्माण की जिजीविषा, एक सफल व्यक्तित्व के निर्माण की जिजीविषा, एक शांत एवं विकाशशील देश के निर्माण की जिजीविषा और एक अच्छे भविष्य के निर्माण की जिजीविषा और उसके लिए सबसे आवश्यक तत्व है एक जागरूक जनता जिसे पूर्णतः सजग होना ज़रूरी है. जिस दिन हम जागरूक होकर अपने-अपने वोट का मूल्यांकन करना सीख जाएँगे, यकीन मानिए वह दिन इस परिभाषा का आख़िरी दिन होगा, वह दिन हमारी सड़ी-गली सरकार का आख़िरी दिन होगा, भ्रष्टाचार का आख़िरी दिन होगा, भ्रष्टाचारियों का आख़िरी दिन होगा, एक कालिख रात का अंत होगा और एक नया सवेरा, नयी किरण का आगाज़ और एक नयी परिभाषा – प्रजातंत्र : प्रजा का तंत्र जहाँ प्रजा ही राजा, प्रजा ही राज्य और प्रजा ही तंत्र.