प्रकृति की ओर बढ़ते कदम को क्या कहते हैं
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आज विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) है. क्या वाकई इस दिवस का कोई मतलब है. लम्बे-लम्बे भाषण-सेमिनार, कार्डबोर्ड पर स्लोगन लेकर चलते बच्चे, पौधारोपण के कुछ सरकारी कार्यक्रम...क्या यही पर्यावरण दिवस है ? क्या इतने मात्र से पर्यावरण शुद्ध हो जायेगा. जब हम पर्यावरण की बात करते हें तो यह एक व्यापक शब्द है, जिसमें पेड़-पौधे, जल, नदियाँ, पहाड़ इत्यादि से लेकर हमारा समूचा परिवेश सम्मिलित है. हमारी हर गतिविधि इनसे प्रभावित होती है और इन्हें प्रभावित करती भी है. कभी लोग गर्मी में ठंडक के लिए पहाड़ों पर जाया करते थे, पर वहाँ भी लोगों ने पेड़ों को काटकर रिसोर्ट और होटल बनने आरंभ कर दिए. कोई यह क्यों नहीं सोचता कि लोग पहाड़ों पर वहाँ के मौसम, प्राकृतिक परिवेश कि खूबसूरती का आनंद लेना चाहते हैं, न की कंक्रीटों का. पर लगता है जब तक यह बात समझ में आयेगी तब तक काफी देर हो चुकेगी. ग्लोबल वार्मिंग अपना रंग दिखाने लगी है, लोग गर्मी में 45 पर तापमान के आने का रो रहे हैं, पर इसके लिए कोई कदम नहीं उठाना चाहता. सारी जिम्मेदारी बस सरकार और स्वयंसेवी संस्थाओं की है. जब तक हम इस मानसिकता से नहीं उबरेंगे, तब तक पर्यावरण के नारों से कुछ नहीं होने वाला है. आइये आज कुछ ऐसा सोचते हैं, जो हम कर सकते हैं. जिसकी शुरुआत हम स्वयं से या अपनी मित्रमंडली से करा सकते हैं. हम क्यों सरकार का मुँह देखें. पृथ्वी हमारी है, पर्यावरण हमारा है तो फिर इसकी सुरक्षा भी तो हमारा कर्त्तव्य है. कुछ बातों पर गौर कीजिये, जिसे मैंने अपने परिवार और मित्र-जनों के साथ मिलकर करने की सोची है, आप भी इस ओर एक कदम बढ़ा सकते हैं-
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