Hindi, asked by puranmals353, 5 months ago

प्रकृति से छेड़छाड़ करने पर मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है ​

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Answered by programmer89
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पृथ्वी है तो जीवन संभव है। हरे भरे पेड़ पृथ्वी के फेफड़े हैं। पेड़ों के चलते ही पर्यावरण संतुलन बना रहता है। पृथ्वी दिवस पर पर्यावरण प्रेमियों ने चिंता जाहिर कि और कहा कि बिना हिफाजत के अपना घर भी सही नहीं रह सकता। इसलिए पूरी पृथ्वी को अपना घर समझें और इसकी सुरक्षा करें। धरती हमारी मां है और हम सब उसकी संतान हैं। प्रकृति से छेड़छाड़ के कारण ही सुनामी भुगतनी पड़ती हैं और मानव जीवन पर खतरे आते हैं। उन्होंने कहा कि विकास के नाम पर इंसान ने जीवनशैली बदली है। जिस कारण प्रदूषण बढ़ा। विकास की होड़ लगी हुई है। दुनिया के पास इतने खतरनाक प्रकार के हथियार हैं जो पृथ्वी को नष्ट कर सकते हैं। प्रकृति के साथ मिलकर काम करेंगे तो जीवन सुरक्षित रहेगा। इंसान ने नदियों का ख्याल नहीं रखा और वह सूखती गई तथा प्रदूषित हुई। यदि जंगल काटने हैं तो उससे तीन गुना ज्यादा पौधे लगाने चाहियें। तब उस स्थिति को संतुलित किया जा सकता है। जिन घातक केमिकल का प्रयोग कर रहे हैं, उन सब चीजों से बचना होगा। मानव को अपना अस्तित्व चाहिये तो पृथ्वी की सुरक्षा के लिए उसे सोचना पड़ेगा। वैज्ञानिकों ने कहा कि प्रकृति के दोहन से मित्र जीव भी नाराज होकर तरह-तरह की विभिषिकाएं प्रदान करते हैं। वह अपने अस्तित्व को बचाने के लिए तरह-तरह का जीवन चक्र बदलते रहते हैं। जिसके क्रम में आज जो विश्व की स्थिति चल रही है उसे भी उसीका परिणाम कहा जा सकता है। वह पूरे धरतीवासियों से अनुग्रह करते हैं कि धरती माता को बचाएं, पर्यावरण को बचायें और अपने व अपने भविष्य में जो पीढि़ अपने वाली है उसे संरक्षित करें। बाक्स फोटो-305 हम अपने विकास के लिए इस धरती माता का ख्याल नहीं करते। प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पहाड़ों को काटकर खेती योग्य जमीनों में कंकरीट के पहाड़ बनाकर उन्हें शहर का दर्जा दिया जा रहा है। विकास की अंधी दौड़ में पर्यावरण का ध्यान नहीं रखा जा रहा। जिस कारण पर्यावरण और धरती माता पर विपरीत असर पड़ रहा है। जो वर्तमान में अब दिखने भी लगा है। पर्यावरण प्रदूषण की मुख्य समस्या है। यह एक बहुत ही विशाल शब्द है। प्रदूषण से धरती माता विशाक्त हो रही है। भूजल भी जहरीला हो रहा है। पर्यावरण में पाए जाने वाले वृक्षों पर भी कुप्रभाव है। जंगलों की कटाई हमारी धरती माता व प्रकृति को एक अपूरित क्षति करके मानव द्वारा नष्ट किया जा रहा है। जिसका कुपरिणाम यह है कि आज मां के स्तन से विषैला दूध निकलता है। अन्न में विषैले अंश पाए जा रहे हैं। जिसके फलस्वरूप मानव व पशुओं में तरह-तरह की बीमारियां हो रही हैं। यहां तक कि मुर्गी का अंडा उत्पादन भी अंधाधुंध रसायन इस्तेमाल से प्रभावित हुआ है। -- डा. एसके पांडे, प्रधान वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, गन्ना प्रजनन केंद्र। बाक्स फोटो-306 पेड़ हैं धरती का श्रृंगार वातावरण में मौजूद गैसों का प्रकृति पर प्रभाव पड़ता है। उद्योगों व वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण वातावरण को प्रभावित करता है। प्रदूषण का असर पृथ्वी पर भी पड़ता है। जिस तरह अपने घर को साफ-सुथरा रखते हैं उसी प्रकार सोचें कि पूरी पृथ्वी अपनी है। उसकी हिफाजत करें। यह हमारी जिम्मेदारी भी है। प्रकृति की खुद की सुंदरता होती है। हमें प्रकृति के खिलाफ कभी नहीं जाना चाहिये। जितना हो सके पृथ्वी को सुंदर बनाए रखें और अधिक से अधिक पौधे लगाएं। जो लोग फ्लैट में ऊपरी मंजिलों पर रहते हैं वह गमलों में पौधे लगा सकते हैं। इंसान के द्वारा प्रकृति से छेड़छाड़ के परिणामस्वरूप नदियां तक प्रदूषित हो गई थी। कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन हुआ तो नदियों में शुद्धता आई है। इससे साबित होता है कि कहीं ना कहीं इंसान ही जल प्रदूषण फैला रहा था। इसलिए जागरूकता होनी जरूरी है। -- डा. अनीता मान। बाक्स फोटो-307 प्राकृतिक संतुलन बनाकर ही बचेगी पृथ्वी व जीवन लॉकडाउन की स्थिति में सभी देख रहे हैं कि आसमान में सप्तऋषि तारे व ध्रुव तारा भी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। पर्यावरण बिल्कुल साफ सुथरा हुआ है। पर्यावरण यदि धूमिल रहेगा, विभिन्न प्रकार के कार्बन, गैसों का प्रभाव सीधा पृथ्वी पर पड़ता है। अप्रैल में मौसम में उतना अधिक तापमान नहीं जबकि इस समय लू चल रही होती। पृथ्वी को विकास के नाम पर जितना नुकसान पहुंचाया है चाहे वह कृषि या औद्योगिक क्षेत्र हो या फिर शहरीकरण की बात हो। इंसान ने हर जगह प्रकृति को असंतुलित करने की कोशिश की है। पहाड़ों व नदियों में खनन चलता है। सबसे बड़ा प्रभाव कृषि क्षेत्र पर पड़ रहा है। पंजाब में तो भूजल में भी जहर पहुंच चुका है। भूजल में पेस्टीसाइडस का असर पहुंच गया है। यह पृथ्वी के साथ अन्याय नहीं तो क्या है। -- डा. एसपी तोमर। बाक्स फोटो-308 पृथ्वी ही हमारे लिए स्वर्ग पृथ्वी ही हमारे स्वर्ग का साकार रूप है। हमने उसी को चुनौती दे दी। इसलिए आज ना दिखने वाले संक्रमण का असर सबके सामने है। नजर नहीं आने वाले संक्रमण ने जीवन को मृत्यु में बदल दिया। विज्ञान एवं प्रकृति के दौर में कोरोना देख पाने की नजर मनुष्य के पास नहीं। मनुष्य की आचार संहिता बने और एक-दूसरे को परखे बिना जिंदगी का कदम ना बढ़ाए पृथ्वी हमारी मां है और रक्षक भी है। मनुष्य की आत्मघाती अभिलाषाएं थी, हम इतने लालची हो गए कि हमारा पानी खत्म होने लगा, पेड़-जंगल खत्म होने लगे।

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