प्रकृति वर्णन से संबंधित कविता है
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कही बाढ़, कही पर सूखा कभी महामारी का प्रकोप। यदा कदा धरती हिलती फिर भूकम्प से मरते बे मौत।। मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारे चढ़ गए भेट राजनितिक के लोभ। वन सम्पदा, नदी पहाड़, झरने इनको मिटा रहा इंसान हर रोज।।
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कही बाढ़, कही पर सूखा कभी महामारी का प्रकोप। यदा कदा धरती हिलती फिर भूकम्प से मरते बे मौत।। मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारे चढ़ गए भेट राजनितिक के लोभ। वन सम्पदा, नदी पहाड़, झरने इनको मिटा रहा इंसान हर रोज।।
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