प्रना. निदा की क्या
उपयोतिीत हो सकती हैं।
Answers
Answer:-
निंदा करने से हमारे स्वभाव से बुराइयां उसी प्रकार दूर हो जाएंगी जिस प्रकार साबुन और पानी से धोने पर कपड़े के सारे मैल धुल जाते हैं।
Explanation :-
निंदारस की व्यापकता यत्र-यत्र सर्वत्र नजर आती है। ऐसा क्यों होता है? दूसरों की निंदा करके बहुधा लोगों को सुखानूभूति क्यों होती है? कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे मन में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ दर्शाने की भावना उस समय सूक्ष्म अहंकार के रूप में मौजूद रहती हो? निश्चय ही ऐसा ही है। अहंकार सूक्ष्म-सूक्ष्मतर व छद्मवेशी होता है। इसीलिए हम उसे पहचान नहीं पाते। परिणाम स्वरूप उसके मकड़जाल में हम उलझ जाते हैं। वैसे भी किसी भी वस्तु को देखने के लिए हमें फासले की जरूरत होती है। आईने में हमें अपनी शक्ल तभी नजर आती है जब थोड़ा फासला हो। चूंकि हमारा स्वयं से फासला रंचमात्र भी नहीं होता, इसलिए हमें अपनी शक्ल प्राय: नजर नहीं आती। अगर कोई इस बात की ओर ध्यानाकर्षण भी करे तो हम अपने ही पक्ष में उल्टे-सीधे तर्क जुटा लेते हैं। जबकि दूसरा व्यक्ति फासले पर होता है। इसलिए उसकी कमियां हमें नजर आ जाती हैं और अहंकार के वशीभूत होकर हम उन्हें निर्ममतापूर्वक उधेड़ने में लग जाते हैं, जबकि हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। किंतु सावधान! कहीं ऐसा न हो कि सामने वाला बुद्धिमान हमसे और अपनी कमियों के प्रति सजग होकर आत्म-सुधार में जुट जाए और हम निंदा करके आत्मपतन के मार्ग पर अग्रसर रहें। मनीषी वही है, जो दूसरों की कमियों पर ध्यान देने के बजाय अपनी कमियों पर ध्यान दे। तभी आत्म-सुधार संभव है।