प्रश्न 01. बाजार क्या है? इसकी विभिन्न विशेषताओं की व्याख्या कीजिए ।
(शब्द सीमा 75100 शब्द, अंक 04)
What is market ? Explain its salient features.
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Answer:
बाजार का अर्थ (bazar kya hai)
Bazar ka arth paribhasha visheshtaye;सामान्य अर्थ मे "बाजार" शब्द से तात्पर्य एक ऐसे स्थान या केन्द्र से होता है, जहां पर वस्तु के क्रेता और विक्रेता भौतिक रूप से उपस्थित होकर क्रय-विक्रय का कार्य करते है।
उदाहरण के लिए शहरों मे स्थापित व्यापारिक केन्द्र जैसे कपड़ा बाजार या गाँव मे लगने वाले हाट।
अर्थशास्त्र मे बाजार शब्द का अर्थ सामान्य अर्थ से भिन्न होता है। अर्थशास्त्र मे बाजार शब्द का तात्पर्य उस संपूर्ण क्षेत्र से होता है, जहां कि वस्तु के क्रेता एवं विक्रिता आपस मे और परस्पर प्रतिस्पर्धा के द्वारा उस वस्तु का एक ही मूल्य बने रहने मे योग देते है।
बाजार की परिभाषा (bazar ki paribhasha)
प्रो. जेवन्स के अनुसार," मूल रूप से बाजार किसी ऐसे सार्वजनिक स्थान को कहते थे जहाँ पर आवश्यक व अन्य प्रकार की वस्तुएं विक्रय हेतु रखी जाती थी परन्तु अब इसका तात्पर्य व्यक्तियों के किसी ऐसे समुदाय से है जिसमे घनिष्ठ व्यापारिक संबंध हो और जो किसी वस्तु मे विस्तृत सौदे करते हो।"
प्रो. ऐली के अनुसार," बाज़ार से तात्पर्य उस सामान्य क्षेत्र से होता है, जहां पर किसी वस्तु विशेष के मूल्य को निर्धारित करने वाली शक्तियाँ क्रियाशील होती है।"
स्टोनियर के अनुसार," बाजार शब्द का आशय ऐसे संगठन से माना जाता है जिसमे किसी वस्तु के क्रेता और विक्रेता परस्पर संपर्क मे रहते है।"
कूर्नों के अनुसार," अर्थशास्त्र मे बाजार का आशय किसी ऐसे स्थान से नही लगाता जहाँ वस्तुओं का क्रय विक्रय किया जाता है बल्कि उस समस्त क्षेत्र से होता है जिसमे वस्तु के समस्त क्रेताओं और विक्रेताओं के मध्य इस प्रकार स्वतन्त्र संपर्क होता है कि वह वस्तु की मूल्य प्रवृत्ति शीघ्रता व सुगमता से समान होने की पाई जाती है।
बाजार की विशेषताएं इस प्रकार से है--
1. एक स्थान या क्षेत्र
बाजार के लिये वस्तु का एक स्थान पर खरीदा या बेचा जाना आवश्यक नही है। यदि कोई वस्तु भारत से इंग्लैंड तक बेची जा रही है तो बाजार का यह समस्त क्षेत्र बाज़ार की परिधि मे होगा। इस प्रकार इसका क्षेत्र स्थान विशेष तक सीमित न होकर विस्तृत होता है। इसका क्षेत्र अन्तर्राष्ट्रीय भी हो सकता है।
2. क्रेता तथा विक्रेता
मांग और पूर्ति के बिना किसी वस्तु के बाजार की कल्पना ही नही जा सकती है। वस्तु के क्रेता तथा विक्रेता दोनों की उपस्थिति ही बाजार बनाती है।
3. पूर्ण स्पर्धा
बाजार की पूर्णता के लिए क्रेता तथा विक्रेताओं के बीच आपस मे संपर्क तथा घनिष्ठ संबंध व सौदे होने आवश्यक है, तभी वस्तु के मूल्य निर्धारण मे सहायता मिलती है।
4. एक वस्तु
अर्थशास्त्री बाजार के लिये एक ही वस्तु को एक बाजार मानते है। उस पूरे क्षेत्र मे जहाँ वह वस्तु पूर्ति के रूप मे उपस्थित की जाती है या उसकी मांग होती है, बाजार माना जाता है।
5. एक मूल
पूर्ण स्पर्धा के कारण एक वस्तु का एक मूल्य ही बाजार को पूर्ण बनाता है। एक बाजार मे एक मूल्य ही प्रचलित होता है।