प्रश्न 01:-निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के सही विकल्प चुनकर उत्तर दीजिए। (01-05 अंक 05)
(अपठित गघ/पघ बोध)
प्रकृति का संतुलन बिगड़ने की दिशा में हम पिछले दो तीन सौ साल के दौरान इतना अधिक बढ़ चुके हैं कि अब पीछे हटना
असंभव सा लगता है । जिस गति से हम विभिन्न क्षेत्रों में प्राकृतिक संतुलन बिगड़ते हैं , इसमें कोई व्यवहारिकता नहीं
प्रतीत होती, क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्थाएँ और दैनिक आवश्यकता है । इस गति के साथ जुड़ती गई है जो हमें ज्ञात नहीं कि
हमें जिसे हम आहार समझ रहे हैं, वह वस्तुतः हमारा दैनिक विष है जो सामूहिक आत्महत्या की दिशा में हमें लिए जा रहा
है । जंगलोंकीही ले लो । यह एक प्रकट तथ्य है कि विभिन्न देशों की वन-संपत्ति अत्यंत तीव्र गति से क्षीण होती जा रही है।
भारत के विभिन्न प्रदेशों विशेषकर पूर्वांचल के राज्यो, तराई, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, कश्मीर आदि के जंगल भारी
संख्या में काटे जा रहे हैं, खूब अच्छी तरह यह जानते हुए भी कि जंगलों को काटने का मतलब होगा भूमि की आरक्षित
रक्षित करना बड़ों को बढ़ावा देना और मौसम के बदलने में सहायक बनाना।
प्रश्न 01. उपरोक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक चुनिए
01.आकाश असंतुलन
02.हवा असंतुलन । 03.प्राकृतिक असंतुलन । 04.भूमि असंतुलन।
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(1) kalyug ka danaw Manish (2) ped - paudhe ki ki katai ke karn aakash santulan bigadta ja raha hai jiski vajah se manav jivan par babut bura prabhav pad raha hai (3) ped paudhe ki katai se hwa santulan bigad raha hai pollution ki matra bad rahi hai (4) prakitik par en sab ka bahut bura prabhav pad raha hai (5) bhumi asantulan manav jivan ki bahut badi samasya ban gayi hai manusy Kama - kha raha hai lekin chain se ji nahi pa raha aur bhumi asantulan se ped paudho par prabhav pad raha hai
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