प्रश्न 1- आज़ादी से आपका क्या तात्पर्य है ? क्या आज़ादी हमेशा अच्छी होती है ?
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Answer:
आजादी व्यवस्था के बिना मुमकिन नहीं। दोनों एक साथ ही चलते हैं। अगर आप एक व्यवस्था नहीं बना सकते तो आजादी भी हासिल नहीं कर सकते। ये दोनों अलग-अलग नहीं किए जा सकते। अगर आप कहते हैं कि मैं वही करूंगा जो मै चाहूंगा। मैं जब चाहे अपना खाना खाऊंगा। मैं जब चाहे कक्षा में आऊंगा। तो आप अव्यवस्था पैदा करते हैं। आपको दूसरों की इच्छा का भी ध्यान रखना होगा। सभी चीजें ठीक से चलें इसके लिए आपको समय पर आना होगा। अगर मैं एक मिनट की भी देरी से आऊं तो मैं आपसे इंतजार कराऊंगा। इसलिए मुझे इसका ध्यान रखना होगा। मुझे दूसरों के बार में भी सोचना होगा। दूसरों का ध्यान रखना होगा, उनकी चिंता करनी होगी। इस तरह सोचने से, इस तरह ध्यान रखने से, इस तरह चिंता करने से एक व्यवस्था बनती है। इसी व्यवस्था के साथ आती है आजादी। जब आपसे कहा जाता है कि यह करो, यह सोचो, यह मानो, इसका ध्यान रखो तो जानते हो इसका क्या अर्थ होता है। इससे आपका दिमाग कुंद होता है। वह अपनी कोशिश, अपनी तेजी खो बैठता है। यह बाहर से थोपा गया अनुशासन आपके दिमाग को नुकसान पहुंचाता है। लेकिन अगर आप देखकर, सुनकर, समझकर, दूसरों के बार में सोचकर खुद को अनुशासित करते हैं तो इससे एक व्यवस्था बनती है। और जहां व्यवस्था होती है वहां हमेशा ही आजादी होती है। आप तभी ठीक से सुन सकते हो जब आप चुप बैठो, ध्यान दो। अगर आप देखने के लिए आजाद नहीं हो, सुनने के लिए आजाद नहीं हो, सोचने के लिए आजाद नहीं हो तो आप व्यवस्था नहीं बना सकते। आजादी और व्यवस्था की यह समस्या हमार जीवन की सबसे मुश्किल समस्या है। अगर आप आजाद नहीं हैं तो आप कभी विकसित नहीं हो सकते। आप कभी अच्छे नहीं हो सकते। अगर पक्षी आजाद न हों तो वे उड़ नहीं सकते। बीज अगर आजाद न हो तो वह पेड़ नहीं बन सकता। हर चीज की तरह इंसान को भी आजादी चाहिए।
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