प्रश्न 1 (क)- वनम्नवलवखत ऄपठठत गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के ईत्तर वलवखए - (1x5=5 )
मानि प्रकृ वत से बहुत कु छ सीखसकता है। सबसे बडी वशक्षा तो स्िार्थ रवहत सेिा भािना की है।
प्रकृ वत हमें ऄपना सब कु छ िान कर िेती है परंतु हम प्रकृ वत को बिले में क्या िेते हैं ? हमें भी प्राकृ वतक संपिा की सेिा
ि संरक्षर् का ध्यान रखना चावहए। परंतु हम करते क्या हैं? हम वबल्कु ल विपरीत व्यिहार करते हैं। हम िनों का
ऄंधाधुंध सफाया करते जा रहे हैं। पेड काटकर औद्योवगक पठरसर, भिन, होटल तर्ा व्यापाठरक स्र्ल बनाते जा रहे हैं।
हम यह तथ्य भूलते जा रहे हैं दक आस प्रकार ये संसाधन एक ना एक दिन समाप्त हो जाएंगे। हमें पता हैदक प्रकृ वत ऄपनी
पूर्तत करनेमें समर्थ है परंतु हम ईसे आन पूर्तत का समय ही नहीं िेना चाहते। ऄतःहमें िन संपिा की सेिा के वलए
िनिधथन करना चावहए तादक प्रकृ वत हमें और बेहतर ढंग से ईपहार िे सके ।
(i) ईपयुथक्त गद्यांश हेतु ईवचत शीषथक िीवजए |
(ii)प्रकृ वत मनुष्य को क्या संिेश िेती है ?
(iii)मनुष्य का प्रकृ वत के प्रवत क्या कत्तथव्य है ?
(iv) मनुष्य िनों का सफाया क्यों करता जा रहा है ?
(v) प्रकृ वत हमें और बेहतर ढंग से ईपहार कब िे सके गी ?
प्रश्न 1(ख )- वनम्नवलवखत पठठत काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के ईत्तर वलवखए - (1x5=5 )
कठपुतली
गुस् से से ईबली
बोली- यह धागे
क् यों हैं मेरे पीछे-अगे?
आन् हें तोड िो;
मुझे मेरे पााँिों पर छोड िो।
सुनकर बोलीं और-और
कठपुतवलयााँ
दक हााँ,
2 | P a g e
बहुत दिन हुए
हमें ऄपने मन के छंि छुए।
मगर...
पहली कठपुतली सोचने लगी-
यह कै सी आच् छा
मेरे मन में जगी?
Answers
Answer:
एक दिन समाप्त हो जाएंगे। हमें पता हैदक प्रकृ वत ऄपनी
पूर्तत करनेमें समर्थ है परंतु हम ईसे आन पूर्तत का समय ही नहीं िेना चाहते। ऄतःहमें िन संपिा की सेिा के वलए
िनिधथन करना चावहए तादक प्रकृ वत हमें और बेहतर ढंग से ईपहार िे सके ।
(i) ईपयुथक्त गद्यांश हेतु ईवचत शीषथक िीवजए |
(ii)प्रकृ वत मनुष्य को क्या संिेश िेती है ?
(iii)मनुष्य का प्रकृ वत के प्रवत क्या कत्तथव्य है ?
(iv) मनुष्य िनों का सफाया क्यों करता जा रहा है ?
(v) प्रकृ वत हमें और बेहतर ढंग से ईपहार कब िे सके गी ?
प्रश्न 1(ख )- वनम्नवलवखत पठठत काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के ईत्तर वलवखए - (1x5=5 )
कठपुतली
गुस् से से ईबली
बोली- यह धागे
क् यों हैं मेरे पीछे-अगे?
आन् हें तोड िो;
मुझे मेरे पााँिों पर छोड िो।
सुनकर बोलीं और-और
कठपुतवलयााँ
दक हााँ,
2 | P a g e
बहुत दिन हुए
हमें ऄपने मन के छंि छुए।
मगर...
पहली कठपुतली सोचने लगी-
यह कै सी आच् छा
मेरे मन में जगी?