History, asked by sunergovind757, 2 days ago

प्रश्न-12 सारसेनिक स्थापत्य शैली की कोई दो विशेषताएं लिखिए। ​

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Answered by laxhmitri737
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इंडो-सरसेनिक वास्तुकला (जिसे इंडो-गॉथिक , मुगल-गॉथिक , नियो-मुगल , या हिंदू शैली के रूप में भी जाना जाता है ) एक पुनरुत्थानवादी स्थापत्य शैली थी जिसका उपयोग ज्यादातर भारत में ब्रिटिश वास्तुकारों द्वारा बाद में 19 वीं शताब्दी में किया गया था, विशेष रूप से सार्वजनिक और सरकारी भवनों में। ब्रिटिश राज और देशी रियासतों के शासकों के महल । इसने देशी इंडो-इस्लामिक वास्तुकला , विशेष रूप से मुगल वास्तुकला से शैलीगत और सजावटी तत्वों को आकर्षित किया , जिसे ब्रिटिश क्लासिक भारतीय शैली के रूप में मानते थे, और, कम अक्सर, हिंदू मंदिर वास्तुकला से । [1]इमारतों का मूल लेआउट और संरचना अन्य पुनरुत्थानवादी शैलियों, जैसे गोथिक पुनरुद्धार और नियो-क्लासिकल में समकालीन इमारतों में उपयोग की जाने वाली विशिष्ट भारतीय विशेषताओं और सजावट के साथ करीब थी।

Answered by tripathiakshita48
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Answer:

सारसेनिक स्थापत्य शैली की कुछ विशेषताओं में कंदाकार गुम्बद, नुकीले मेहराब, गुंबददार तथा घुमावदार छतें, झरोखा, बुर्ज, छोटी मीनारें, लाल और सफेद रंग, इत्यादि सम्मिलित हैं।

Explanation:

इंडो-सारासेनिक वास्तुकला ने हिंदू, इस्लामी और पश्चिमी तत्वों की विशेषताओं को जोड़ा। 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश शासन के उत्तरवर्ती चरण के दौरान औपनिवेशिक स्थापत्य कला पर इंडो-सारासेनिक शैली का प्रभाव परिलक्षित था। यह पुनरुद्धार शैली थी जिसमें मुख्यतः मुगल स्थापत्य कला के साथ यूरोपीय स्थापत्य शैली और हिन्दू शैली के तत्वों को मिश्रित किया गया। यह सार्वजनिक और सरकारी इमारतों जैसे डाकघरों, रेलवे स्टेशनों, विश्राम गृह और सरकारी भवनों आदि तथा देशी रियासतों के शासकों के महलों इत्यादि में प्रतिबिंबित हुई। इस प्रकार पूरे साम्राज्य पर बड़ी संख्या में ऐसी इमारतें बननी शुरू हुईं जिसने न केवल भारत में औपनिवेशिक वास्तुकला का विकास किया, बल्कि भारत में मौजूदा वास्तुकला से प्रेरणा भी ली। इसकी कुछ विशेषताओं में कंदाकार गुम्बद, नुकीले मेहराब, गुंबददार तथा घुमावदार छतें, झरोखा, बुर्ज, छोटी मीनारें, लाल और सफेद रंग, इत्यादि सम्मिलित हैं। इस शैली के प्रभाव से अपना रामपुर भी अछूता नहीं रहा, यद्यपि इस शैली की वास्तुकला उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विकसित और अपनाई गई थी, लेकिन यह रामपुर में महल सराय पैलेस (Mahal Sarai Palace) और खुसरो बाग महल (Khusro bagh palace) में भी देखी जा सकती है, जिनका निर्माण 1774 से 1800 के बीच हुआ था। 

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