Political Science, asked by deepakcommando888, 3 months ago

प्रश्न.13 हिन्दु और मुस्लिम विवाह में अन्तर स्पष्ट कीजिए ?
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Answered by aniaaryan224
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Answer:

इस्लामिक निकाह और हिन्दू विवाह में मूलभूत अन्तर

साधारत: अज्ञानतावश अधिकांश लोग “निकाह” को “विवाह” ही मानते है। लेकिन मुसलमानों का “निकाह” हिन्दुओं वाला “विवाह” नहीं है।

जब कोई “मुस्लिम” लड़का किसी लड़की से “निकाह” करता है, तो मौलवी लड़का और लड़की दोनों से पूछते है…

“क्या आपको इतनी “मेहर” में फलाने से “निकाह” स्वीकार है ?” लड़का और लड़की के तीन बार “कबूल है” बोलने पर “निकाह” स्वीकार हो जाता है।

अब जानिये ये मेहर क्या है..?..

मेहर एक “धनराशि” है जो लड़का लड़की को “चुकाता” है या देना “तय” करता है अर्थात “लड़की की कीमत”…

“निकाह” हिन्दू धर्म वाला “विवाह” नहीं एक “सौदा” है।

इसके लिए न्यायालय भी मान चूका है कि हिन्दुओ का “विवाह” एक “संस्कार” है और मुसलमानों का “निकाह एक सौदा” है।

हिन्दुओं के विवाह भारतीय संस्कृति के “सौलह संस्कारों में से एक संस्कार” है। हमारे विवाह “जन्म जन्मान्तर” का रिश्ता होते है। कोई समझौता नहीं। हिन्दुओं के “संस्कार सात पीढ़ियों” तक निभाये जाते है, “वर और वधू” की पिछली “सात पीढियां” को “जांच परख” कर रिश्ते होते है।

निकाहरूपी ये “सौदा रद्द” करने का इस्लामिक शरियत कानून में हर मुसलमान को खुली छुट है, सिर्फ तीन तलाक तलाक तलाक बोलते ही सौदा खत्म। “तीन बार तलाक” चाहे “मजाक” में या “गुस्से” या “नशे” में ही बोल दिया तो भी “निकाह खारिज” माना जाती है।

“मौलवी और गवाहों” के सामने तय ”मेहर की धनराशि” का भुगतान करो और मामला साफ, हिन्दू समाज की तरह मुसलमान लड़की गुजारे भत्ते की अधिकारी नहीं, क्योंकि गांधीवादी कांग्रेस सरकार “साहबानों प्रकरण” में ऐसा “कानून” पास कर चुकी है कि, मुस्लिम महिला “इस्लामिक शरीयत” के हिसाब से गुजारे भत्ते की अधिकारी नहीं होती, सिर्फ पहले से तय “मेहर” की ही अधिकारी होती है, इसलिए “गुजारा भत्ता” नही।

मुस्लिम कानून “शरीयत” के अनुसार एक मुसलमान चाहे जितने “निकाह” कर सकता है। अर्थात “मुस्लिम समाज” में घर की स्थिति “हरम” जैसी होती है। जहाँ मुस्लिम जितनी चाहे उतनी लड़कियां खरीद कर ला सकते है। और उन्हें पत्नी बना कर घर में रख सकता है। क्योकि इस्लाम हर मुसलमान को कई पत्नियां रखने का अधिकार देता है।

“अरब देशों” में “कई घरों” में आज भी “कई कई औरतें” मिल जायेगी, भारत में हिन्दुओं के साथ बसने के कारण यहाँ ये “बहुपत्नी” चलन कम है |

मुसलमान “सगे बहिन भाई” आपस में “अपने बच्चों” का रिश्ता करते है, ऐसा करने से एक तरफ से “मामा का रिश्ता समाप्त” और दूसरी तरफ से “बुआ का रिश्ता समाप्त” तो फिर वो बच्चे “किसे मामा या किसे बुआ” कहेंगे।

मित्रों आज देश में करोड़ों हिन्दूओं से मुसलमानों ने “अल् तकिया” के कारण “मुंहबोले “बहिन या भाई” के रिश्ते बना रखे है और हिन्दुओ के घरों में “आते जाते” है, जब ये लोग अपनी “सगी बहिन” के भी “सगे” नही होते तो क्या “मुंहबोली बहिन” को कैसे “बख्श” देंगे ?? सोचिए !

ये संस्कारों का अन्तर है। इसलिए हिन्दू लडकियों को किसी मुस्लिम लड़के से शादी की बात सोचने से पहले ये बातें स्मरण रखनी चाहिए |

भारत के दोहरे कानून के अनुसार एक “हिन्दू लड़की” 15 साल की उम्र पूरा करने के बाद “निकाह” कर सकती है। “सर्वोच्च न्यायालय” से लेकर भारत के “सभी न्यायालय” इसको मानते है, बस शर्त ये है कि लड़की “इस्लाम स्वीकार” कर ले। क्योंकि गांधीवादी दरिंदों के कारण “मुस्लिमो” के लिए भारत देश में “अलग साम्प्रदायिक कानून” मान्य है।

ऐसे “दोगले कानून” के कारण से घर से भागी हुई “हिन्दू लड़की मुस्लिम” बन जाती है। धर्मान्तरण को बढ़ावा मिलता है | अब भारत देश “सेक्युलर नहीं इस्लामिक” बन चुका है। तभी तो “मुस्लिमो औरतों” के केस में न्यायालय में मुस्लिमो का “शरीयत कानून” ही चलता है |

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