प्रश्न 2- निंदक के संबंध में आपको लोगों के विचारों और कबीर जी के विचारों में क्या भिन्नता नज़र आत
है ? इनमें से आपको किसका विचार अच्छा लगा व क्यों ?
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निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय। अर्थ : इस दोहे में कबीर जी ने बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही हैं उन लोगों के लिए जो दिन रात आपकी निंदा करते हैं और आपकी बुराइयाँ बताते हैं
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निंदक के संबंध में कबीर जी के व लोगो के विचार बिल्कुल विपरीत अवधारणा वाले है। मुझे कबीर जी के विचार अच्छे लगे ।
- संत कबीर निंदक को हमारा शुभ चिंतक मानते है उन्हें निंदकों से घृणा नहीं होती परन्तु लोगो को निंदक पसंद नहीं आते
- निंदकों से लोग दूर रहना पसंद करते है ,उन्हें पास भी नहीं आने देते जबकि संत कबीर कहते है कि अपने निंदकों को हमेशा अपने आस पास रखना चाहिए । उनका एक दोहा है , " निंदक नियरे राखिए , आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना निर्मल करे सुभाय .। " इस दोहे का अर्थ है कि निंदक हमारे मन की सफाई करता है , हमारे मन की बुराइयों पर झाड़ू लगाता है, हमारे मन रूपी मैले कपड़ों को बिना पानी व बिना साबुन के धोता है। एक प्रकार से वह तो धोबी का काम करता है ।
- लोगो की जब निंदा होती है तब उन्हें बहुत क्रोध अा जाता है तथा जब तक वे वे निंदक को जली कटी नहीं सुनाते , उन्हें चैन नहीं आता परन्तु कबीर जी निंदा होने से प्रसन्न होते है ।
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