Social Sciences, asked by aswanthsukumar4183, 11 months ago

प्रश्न 6.
व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के हनन होने पर वह कहाँ सीधे शिकायत कर सकता है?

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Answered by ishikamittal1257
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Answer:

सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि यदि कोई क़ानून मौलिक अधिकारों का हनन करता है तो अदालतें कानून बनाने, संशोधन करने या उसे निरस्त करने के लिए बहुमत की सरकार का इंतजार नहीं कर सकतीं.प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा, ‘हम मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की समस्या से निपटने के लिए कानून बनाने, संशोधन करने या कोई कानून नहीं बनाने के लिए बहुमत वाली सरकार का इंतजार नहीं करेंगे.’संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जज आरएफ नरिमन, जज एएम खानविलकर, जज धनंजय वाई. चंद्रचूड़ और जज इंदु मल्होत्रा शामिल हैं.सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ परस्पर सहमति से दो वयस्कों के यौन संबंधों को भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अपराध के दायरे से बाहर रखने के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. More in भारत : भारत ने कुलभूषण जाधव को राजनयिक पहुंच मुहैया कराने के पाकिस्तान के प्रस्ताव को स्वीकार कियानए मोटर वाहन अधिनियम लागू होने के पहले दिन दिल्ली में 3,900 चालान कटेई-टिकट: नॉन-एसी के लिए 15 रुपये और एसी के लिए 30 रुपये का सेवा शुल्क वसूलेगा आईआरसीटीसीभूख से लड़ने के लिए सामुदायिक रसोई की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी कियाअसम: डॉक्टर की पीट-पीटकर हत्या मामले में 21 गिरफ़्तारग्राउंड रिपोर्ट: ‘जय हिंद’ से जेल, कश्मीरी नेताओं का सफ़र पीठ ने कहा कि अदालतें इंतजार करने के लिए बाध्य नहीं हैं और यदि मौलिक अधिकारों के हनन का मामला उनके सामने लाया जाता है तो वह उस पर कार्रवाई करेगी.संविधान पीठ ने ये टिप्पणियां उस वक्त कीं जब कुछ गिरिजाघरों और उत्कल क्रिश्चियन एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज जॉर्ज ने कहा कि धारा 377 में संशोधन करने या इसे बरकरार रखने के बारे में फैसला करना विधायिका का काम है.इस पर पीठ ने कहा, ‘अगर हमें लगता है कि मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है, तो ये मौलिक अधिकार अदालत को अधिकार देते हैं कि ऐसे कानून को निरस्त किया जाए.’ मनोज जॉर्ज ने ‘लैंगिक रूझान’ शब्द का भी हवाला दिया और कहा कि नागरिकों के समता के अधिकार से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 में प्रयुक्त ‘सेक्स’ शब्द को ‘लैंगिक रूझान’ के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता है.उन्होंने दलील दी कि लैंगिक रूझान सेक्स शब्द से भिन्न है क्योंकि एलजीबीटीक्यू से इतर भी अनेक तरह के लैंगिक रूझान हैं. लाइव लॉ वेबसाइट के अनुसार इस पर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा, ‘अगर अनुच्छेद 15 को अनुच्छेद 19 और 21 के साथ पढ़ा जाता है तो सेक्स सिर्फ लैंगिक पहचान ही नहीं बल्कि लैंगिक रूझान भी है.’इससे पहले सरकार ने धारा 377 की संवैधानिक वैधता का मामला शीर्ष अदालत के विवेक पर छोड़ दिया था. केंद्र के रुख का संज्ञान लेते हुए न्यायालय ने कहा था कि वह सिर्फ परस्पर सहमति से दो वयस्कों के यौन रिश्तों के संबंध में कानून की वैधता पर विचार कर रहा है.वहीं टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 के मामले में फैसला सुरक्षित कर लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 के पक्ष और विपक्ष में पैरवी करने वाले वकीलों से कहा कि वे इस शुक्रवार तक अपनी बात लिखित में जमा करें. आज सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 90 मिनट से ज्यादा देर तक सुनवाई की.धारा 377 के पक्ष में बात करने वाले वकीलों ने कहा था कि इस मामले में जनमत संग्रह होना चाहिए लेकिन कोर्ट ने कहा कि फैसला बहुमत के फैसले के आधार पर नहीं बल्कि संविधान नैतिकता के आधार पर किया जाएगा.बता दें कि धारा 377 में अप्राकृतिक अपराध का जिक्र है. इसके तहत जो भी प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ यौनाचार करता है तो उसे उम्रकैद, या दस साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है.

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