प्रश्न 7 - वचोंता मेंडू बेिुखिया के वपता को क्ा पता नही ोंचलता था?
(A) कब सुबह हत िई
(B) कब आलस सेभरी ितिहर ढल िई
(C) कब सुनहरेबािलतोंमेंसूरज डू बा और कब शाम हत िई
(D) उिरतक् सभी
प्रश्न 8 - बच्ची के वपता को ऊपर विशाल आकाश मेंचमकतेतारेकै िेलग रहेथे?
(A) हीरतोंके समान
(B) चमकतेशीशेके समान
(C) जलतेहुए अोंिारतोंके समान
(D) इनमेंसेकतई नही ों
प्रश्न 9 - िुखिया का वपता उिेझकझोरकर िुद ही क्ा पूछना चाहता था?
(A) सुखिया की बीमारी के बारेमें
(B) िेवी मााँके प्रसाि के फू ल के बारेमें
(C) छुआछू त की समस्या के बारेमें
(D) उिरतक् सभी
प्रश्न 10 - मोंवदर के विशाल आाँगन मेंकमल के फू ल वकि तरह शोभा देरहेथे?
(A) सतनेके घड़तोंके समान
(B) सूयदके समान
(C) िूबसूरत रोंितोंके समान
(D) इोंद्रधनुष के समान
प्रश्न 11 - मोंवदर मेंवकि तरह का माहौल लग रहा था?
(A) शािी की तरह
(B) िुपशयतोंका
(C) उत्सव की तरह
(D) जन्मतत्सव की तरह
प्रश्न 12 - िुखिया का वपता मोंवदर मेंक्ा कल्पना करनेलगा?
(A) सुखिया की बीमारी के ठीक हतनेकी
(B) सुखिया कत प्रसाि का फू ल िेनेकी
(C) छुआछू त की समस्या की समाखि की
(D) मोंपिर मेंउत्सव की
Answers
आलस्य का रोग जिस किसी को भी जीवन में पकड़ लेता है तो फिर वह संभल नहीं पाता। आलस्य से देह और मन, दोनों कमजोर पड़ जाते हैं। आलसी व्यक्ति जीवनपर्यंत लक्ष्य से दूर भटकता रहता है। कहा भी गया है कि आलसी को विद्या कहां, बिना विद्या वाले को
Publish Date:Sun, 02 Nov 2014 01:13 PM (IST)Author: Rajesh Niranjan
आलस्य का रोग जिस किसी को भी जीवन में पकड़ लेता है तो फिर वह संभल नहीं पाता। आलस्य से देह और मन, दोनों कमजोर पड़ जाते हैं। आलसी व्यक्ति जीवनपर्यंत लक्ष्य से दूर भटकता रहता है। कहा भी गया है कि आलसी को विद्या कहां, बिना विद्या वाले को धन कहां, बिना धन वाले को मित्र कहां और बिना मित्र के सुख कहां? आलस्य को प्रमाद भी कहा जाता है। कुछ काम नहीं करना ही प्रमाद नहीं है, बल्कि, अकरणीय, अकर्तव्य यानी नहीं करने योग्य काम को करना भी प्रमाद है। जो आलसी है वह कभी भी अपनी आत्म-चेतना से जुड़ाव महसूस नहीं करता है।
कई बार व्यक्ति कुछ करने में समर्थ होता है, फिर भी उस कार्य को टालने लगता है और धीरे-धीरे कई अवसर भी हाथ से निकल जाते हैं। तब पश्चाताप के अलावा और कुछ नहीं बचता। 'आज नहीं कलÓ आलसी व्यक्तियों का जीवन सूत्र है। शायद आलसी व्यक्ति यह नहीं सोचता है कि जंग लगकर नष्ट होने की अपेक्षा श्रम करके, मेहनत करके घिस-घिस कर खत्म होना कहीं ज्यादा अच्छा होता है। आज ही एक संकल्प लें-जीवन जाग्रति का, जागरण का। जागरण का मतलब आंखें खोलना नहीं, बल्कि अंतसचेतना या अंतर्चक्षुओं को खोलना है। वेद का उद्घोष है कि उठो, जागो और जो इस जीवन में प्राप्त करने आए हो उसके लक्ष्य के लिए जुट जाओ। जो जगकर उठता नहीं है, वह भी आलसी है। जो अविचल भाव से लक्ष्य के प्रति समर्पित होकर कार्य सिद्धि तक जुटा रहता है, वही व्यक्ति सही मायने में जाग्रत कहलाएगा। आलसी वही नहीं है जो काम नहीं करता, बल्कि वह भी है जो अपनी क्षमता से कम काम करता है। आशय यह है कि जो अपने दायित्व के प्रति ईमानदार नहीं है, जिसे कर्तव्य बोध नहीं है वह भी आलसी है। क्षमता से कम काम करने पर हमारी शक्ति क्षीण होती जाती है और हम अपनी असीमित ऊर्जा को सीमा में बांधकर उसका सही उपयोग नहीं कर पाते हैं। आलसी व्यक्ति अकर्मण्य होता है। इसलिए उसे दरिद्रता भी जल्दी ही आती है। आलसी व्यक्ति उत्साही नहीं होने के कारण जीवन में अक्सर असफलता का सामना करते हैं। सफल होने के लिए जरूरी है कि हम आलस्य का त्याग करें और अपनी पूरी क्षमता से काम करें।