Hindi, asked by deepanshugarg2p94n0s, 22 hours ago

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Answered by vaibhav13550
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लेखक प्रेमचंद ने इस पाठ में अपने बड़े भाई के बारे में बताया है जो की उम्र में उनसे पाँच साल बड़े थे परन्तु पढाई में केवल तीन कक्षा आगे। लेखक स्पष्टीकरण देते हुए कहते हैं ऐसा नहीं है की उन्होंने बाद में पढ़ाई शुरू की बल्कि वे चाहते थे की उनका बुनियाद मजबूत हो इसलिए एक साल का काम दो-तीन साल में करते यानी उनके बड़े भाई कक्षा पास नहीं कर पाते थे। लेखक की उम्र नौ साल थी और उनके भाई चौदह साल के थे। वे लेखक की पूरी निगरानी रखते थे जो की उनका जन्मसिद्ध अधिकार था।

बड़े भाई स्वभाव से बड़े अध्यनशील थे, हमेशा किताब खोले बैठे रहते। समय काटने के लिए वो कॉपियों पर तथा किताब के हाशियों पर चित्र बनाया करते, एक चीज़ को बार-बार लिखते। दूसरी तरफ लेखक का मन पढ़ाई में बिलकुल नहीं लगता। अवसर पाते ही वो हॉस्टल से निकलकर मैदान में खेलने आ जाते। खेलकूद कर जब वो वापस आते तो उन्हें बड़े भाई के रौद्र रूप के दर्शन होते। उनके भाई लेखक को डाँटते हुए कहते कि पढ़ाई इतनी आसान नहीं है, इसके लिए रात-दिन आँख फोड़नी पड़ती है खून जलाना पड़ता है तब जाकर यह समझ में आती है। अगर तुम्हें इसी तरह खेलकर अपनी समय गँवानी है तो बेहतर है की घर चले जाओ और गुल्ली-डंडा खेलो। इस तरह यहाँ रहकर दादा की गाढ़ी कमाई के रुपए क्यों बरबाद करते हो? ऐसी लताड़ सुनकर लेखक रोने लगते और उन्हें लगता की पढ़ाई का काम उनके बस का नहीं है परन्तु दो-तीन घंटे बाद निराशा हटती तो फटाप पढाई-लिखाई की कठिन टाइम-टेबिल बना लेते जिस वो पालन नहीं कर सकते। खेल-कूद के मैदान उन्हें बाहर खिंच ही लाते। इतने फटकार के बाद भी वो खेल में शामिल होते रहें।

सालाना परीक्षा में बड़े भाई फिर फेल हो गए और लेखक अपनी कक्षा में प्रथम आये। उन दोनों के बीच अब दो कक्षा की दूरी रह गयी । लेखक के मन में आया की वह भाई साहब को आड़े हाथों लें परन्तु उन्हें दुःखी देखकर लेखक ने इस विचार को त्याग दिया और खेल-कूद में फिर व्यस्त हो गए। अब बड़े भाई का लेखक पर ज्यादा दबाव ना था।

एक दिन लेखक भोर का सारा समय खेल में बिताकर लौटे तब भाई साहब ने उन्हें जमकर डाँटा और कहा कि अगर कक्षा में अव्वल आने पर घमंड हो गया है तो यह जान लो की बड़े-बड़े आदमी का भी घमंड नहीं टिक पाया, तुम्हारी क्या हस्ती है? अनेको उदाहरण देकर उन्होंने लेखक को चेताया। बड़े भाई ने कक्षा की अलजबरा, जामेट्री और इतिहास पर अपनी टिप्पणी की और बताया की यह सब विषय बड़े कठिन हैं। निबंध लेखन को उन्होंने समय की बर्बादी बताया और कहा की परीक्षा में उत्तीर्ण करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। स्कूल का समय निकट था नही तो लेखक को और बहुत कुछ सुनना पड़ता। उस दिन लेखक को भोजन निःस्वाद सा लगा। इतना सुनने के बाद भी लेखक की अरुचि पढाई में बनी रही और खेल-कूद में वो शामिल होते रहे।फिर सालाना परीक्षा में बड़े भाई फेल हो गए और लेखक पास। बड़े भाई ने अत्याधिक परिश्रम किया था और लेखक ने ज्यादा नहीं। लेखक को अपने बड़े भाई पर दया आ रही थी। जब नतीजा सुनाया गया तो वह रो पड़े और उनके साथ लेखक भी रोने लगे। पास होने की ख़ुशी आधी हो गयी। अब उनके बीच केवल एक दर्जे का अंतर रह गया। लेखक को लगा यह उनके उपदेशों का ही असर है की वे दनादन पास हो जाते हैं। अब भाई साहब नरम पड़ गए। अब उन्होंने लेखक को डाँटना बंद कर दिया। अब लेखक में मन में यह धारणा बन गयी की वह पढ़े या ना पढ़े वे पास हो जायेंगे।

एक दिन संध्या समय लेखक होस्टल से दूर कनकौआ लूटने के लिए दौड़े जा रहे थे तभी उनकी मुठभेड़ बड़े भाई से हो गयी। वे लेखक का हाथ पकड़ लिया और गुस्सा होकर बोले कि तुम आठवीं कक्षा में भी आकर ये काम कर रहे हो। एक ज़माने में आठवीं पास कर नायाब तहसीलदार हो जाते थे, कई लीडर और समाचारपत्रों संपादक भी आठवीं पास हैं परन्तु तुम इसे महत्व नही देते हो। उन्होंने लेखक को तजुरबे का महत्व स्पष्ट करते हुए कहा कि भले ही तुम मेरे से कक्षा में कितने भी आगे निकल जाओ फिर भी मेरा तजुरबा तुमसे ज्यादा रहेगा और तुम्हें समझाने का अधिकार भी। उन्होंने लेखक को अम्माँ दादा का उदाहरण देते हुए कहा की भले ही हम बहुत पढ़-लिख जाएँ परन्तु उनके तजुरबे की बराबरी नही कर सकते। वे बिमारी से लेकर घर के काम-काज तक में हमारे से ज्यादा अनुभव रखते हैं। इन बातों को सुनकर लेखक उनके आगे नतमस्तक हो गए और उन्हें अपनी लघुता का अनुभव हुआ। इतने में ही एक कनकौआ उनलोगों के ऊपर से गुजरा। चूँकि बड़े भाई लम्बे थे इसलिए उन्होंने पतंग की डोर पकड़ ली और होस्टल की तरफ दौड़ कर भागे । लेखक उनके पीछे-पीछे भागे जा रहे थे।

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