प्रश्न- क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात ना कहोगे?- इस पंक्ति का अर्थ विस्तार से बताते हुए लिखें कि यह वाक्य किसने किससे कहा और क्यों कहा? 50 से 60 शब्दों में अपने विचार लिखिए ?
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अभी रात का एक बजा है. देश का काफी नौजवान दिन भर का थका हारा सोशल मीडिया की वाल से हटकर इनबॉक्स में चला गया. कारण आज फिर इस युवा ने अजान के खिलाफ लाउडस्पीकर उठाया था. हलाला के विरुद्ध हल्ला बोला था. कश्मीर को लेकर कांग्रेस को कोसा था. कुछ ने मोदी को देश के लिए अच्छा तो कुछ ने खतरनाक बताया था, सोनू निगम को सच्चा देशभक्त बताने के साथ कश्मीरी पत्थरबाजों पर नरम रुख अपनाने पर राजनाथ सिंह को अपने बेटे पंकज सिंह को बार्डर पर भेजने की मांग की थी. मुताह विवाह के खिलाफ बिगुल बजाया था. बिगड़े काम बनने के लिए शनि महाराज और साथ फन वाले सांप की फोटो डालकर लाइक मांगे थे, लेकिन बिगाड़ के डर से ईमान की बात किसी ने नहीं कही थी.
जुम्मन मियां की खाला ने अलगू चौधरी से कहा था-क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे? तब मुंशी प्रेमचंद ने आगे लिखा था कि हमारे सोये हुए धर्म-ज्ञान की सारी सम्पत्ति लुट जाय, तो उसे खबर नहीं होती, परन्तु ललकार सुनकर वह सचेत हो जाता है. फिर उसे कोई जीत नहीं सकता. अलगू इस सवाल का कोई उत्तर न दे सका, पर उसके हृदय में ये शब्द गूँज रहे थे- क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे? लेकिन आज समय बदल गया शायद प्रेमचंद आज प्रासंगिक नहीं रहा उसकी यह कहानी अब कहीं धर्म की धूल में दब गयी. क्योंकि लोग आज बिगाड़ के डर से ईमान की बात कहने से कतराने लगे.
हो सकता है इस लेख के बाद मेरे ऊपर देशद्रोह का टेग लग जाये या फिर सोशल मीडिया के कुछ महारथी मुझे राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाने आ जाये, या फिर कुछ सर के बाल मुंडवाए नेता मुझे पाकिस्तान जाने की सलाह दे डाले. मुझे हिंदुत्व का सबक याद दिलाये, चार मौलानाओं के फतवों के यू ट्यूब लिंक मेरे मुंह पर फेंककर मारे और कश्मीर से लेकर बंगाल तक सारा इतिहास मुझे पढाये, पर तमिलनाडु के किसानों पर मुंह न खोले जिन्होंने खुलेआम पिसाब पीसूब पिया है. क्योंकि अब बिगाड़ के डर से लोग ईमान की बात नहीं कह पाते.
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