प्रश्नानाम् उत्तरम् एकपदेन दीयताम् (मौखिक-अभ्यासार्थम्)-
(क) पिता पुत्राय बाल्ये किं यच्छति? |
(ख) विमूढधीः कीदृशीं वाचं परित्यजति?
(ग) अस्मिन् लोके के एव चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः?
(घ) प्राणेभ्योऽपि क: रक्षणीयः?
(ङ) आत्मनः श्रेयः इच्छन् नरः कीदृशं कर्म न कुर्यात्?
(च) वाचि किं भवेत्?
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Your search - भिन्नप्रकृतिकं पदं चिनुत- (क) विचित्रा, शुभावहा, शङ्कया, मञ्जूषा । (ख) कश्चन, किञ्चित्, त्वरित, यदु
(क) पिता पुत्राय बाल्ये किं यच्छति? |
उत्तर: पिता यच्छति पुत्राय बाल्ये विद्याधनं महत्, पिताऽस्य किं तपस्तेपे इत्युक्तिस्तत्कृतज्ञता।
► पिता पुत्र को विद्या रूपी बहुत बड़ा धन देता है, इसमें पिता ने क्या तप किया, ये कथन ही उसकी कृतज्ञता है।
(ख) विमूढधीः कीदृशीं वाचं परित्यजति?
उत्तर: त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं परुषां योऽभ्युदीरयेत्, परित्यज्य फलं पक्वं भुक्तेऽपक्वं विमूढधीः।
► जो व्यक्ति धर्मसम्मत मधुर वाणी को छोड़कर कठोर वाणी बोले वो उस मूर्ख व्यक्ति के समान है, जो पका फल छोड़कर कच्चा फल खाता है।
(ग) अस्मिन् लोके के एव चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः?
उत्तरः विद्वांस एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः। अन्येषां वदने ये तु ते चक्षुर्नामनी मते।
► इस संसार में केवल विद्वान लोग ही आँख वाले होते हैं, बाकी अन्य लोगों के मुख पर जो आँखें होती हैं, वे आँखे केवल नाम मात्र की आँखें है। कहने का तात्पर्य है, कि ज्ञान रूपी आँखे ही असली आँखे है, जो केवल विद्वानों के पास ही होती हैं।
(घ) प्राणेभ्योऽपि क: रक्षणीयः?
उत्तर: आचारः प्रथमो धर्मः इत्येतद् विदुषां वचः, तस्माद् रक्षेत् सदाचारं प्राणेभ्योऽपि विशेषतः।
► सद् आचरण अर्थात सदाचार ही मनुष्य का पहला धर्म है, अतः इसकी रक्षा प्राणों से भी बढ़कर करनी चाहिये।
(ङ) आत्मनः श्रेयः इच्छन् नरः कीदृशं कर्म न कुर्यात्?
उत्तर: य इच्छत्यात्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च, न कुर्यादहितं कर्म स परेभ्यः कदापि च।
► जो मनुष्य अपना कल्याण चाहता है, स्वयं के लिये ढेर सारा सुख चाहता है, उसे कभी भी दूसरों का अहित करने वाला कोई कार्य नही करना चाहिये।
(च) वाचि किं भवेत्?
उत्तर: वाक्पटुधैर्यवान् मन्त्री सभायामप्यकातरः। स केनापि प्रकारेण परैर्न परिभूयते।
►जो मंत्री बोलने हाजिरजवाब, धैर्यवान और चतुर होता है, वो अपनी सभा में कभी भी अपमानित नही होता।
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