Hindi, asked by Bhaveshyeole4406, 10 months ago

प्रतापनारायण मिश्र का जीवन परिचय, साहित्यिक योगदान व भाषाशैली

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Answered by Stylishhh
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हिंदी गद्य साहित्य के सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रतापनारायण मिश्र का जन्म 1856 ई० में उत्तर प्रदेश के बैजे (उन्नाव) नामक गाँव में हुआ। वे भारतेंदु युग के प्रमुख साहित्यकार थे। उनके पिता संकटाप्रसाद एक प्रसिद्ध ज्योतिषी थे और अपने पुत्र को भी ज्योतिषी बनाना चाहते थे। किंतु मिश्र जी को ज्योतिष की शिक्षा रुचिकर नहीं लगी, पिता ने अंग्रेजी पढ़ने के लिए स्कूल भेजा किंतु वहाँ भी उनका मन नहीं रमा। लाचार होकर उनके पिता जी ने उनकी शिक्षा का प्रबंध घर पर ही किया।

इस प्रकार मिश्र जी की शिक्षा अधूरी ही रह गई। किंतु उन्होेंने प्रतिभा और स्वाध्याय के बल से अपनी योग्यता पर्याप्त बढ़ा ली थी। वह हिंदी, उर्दू और बंगला तो अच्छी तरह जानते ही थे, फारसी, अंग्रेजी और संस्कृत में भी उनकी अच्छी गति थी। मिश्र जी छात्रावस्था से ही ‘कविवचनसुधा’ के गद्य-पद्य-मय लेखों का नियमित पाठ करते थे, जिससे हिंदी के प्रति उनका अनुराग उत्पन्न हुआ। लावनी गायकों की टोली में आशु रचना करने तथा ललित जी की रामलीला में अभिनय करते हुए उनसे काव्य रचना की शिक्षा ग्रहण करने से वह स्वयं मौलिक रचना का अभ्यास करने लगे। इसी बीच वह भारतेंदु जी के संपर्क में आए। उनका आशीर्वाद तथा प्रोत्साहन पाकर वह हिंदी गद्य तथा पद्य रचना करने लगे। १८८२ के आसपास उनकी रचना ‘प्रेमपुष्पावली’ प्रकाशित हुई और भारतेंदु जी ने उसकी प्रशंसा की तो उनका उत्साह बहुत बढ़ गया।

मिश्र जी भारतेंदु जी के व्यक्तित्व से प्रभावित थे तथा उन्हें अपना गुरु और आदर्श मानते थे। ये अपने हाजिरजवाबी एवं विनोदी स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थे।

१५ मार्च, १८८३ को, ठीक होली के दिन, अपने कई मित्रों के सहयोग से मिश्र जी ने ‘ब्राह्मण’ नामक मासिक पत्र निकाला। यह अपने रंग-रूप में ही नहीं, विषय और भाषा-शैली की दृष्टि से भी भारतेंदु युग का विलक्षण पत्र था। सजीवता, सादगी, बाँकपन और फक्कड़पन के कारण भारतेंदुकालीन साहित्यकारों में जो स्थान मिश्र जी का था, वही तत्कालीन हिंदी पत्रकारिता में इस पत्र का था।

मिश्र जी परिहासप्रिय और जिंदादिल व्यक्ति थे, परंतु स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही के कारण उनका शरीर युवावस्था में ही रोग से जर्जर हो गया था। स्वास्थ्यरक्षा के नियमों का उल्लंघन करते रहने से उनका स्वास्थ्य दिनों-दिन गिरता गया। १८९२ के अंत में वे गंभीर रूप से बीमार पड़े और लगातार डेढ़ वर्षों तक बीमार ही रहे। अंत में ३८ वर्ष की अवस्था में ६ जुलाई, १८९४ को दस बजे रात में भारतेंदुमंडल के इस नक्षत्र का अवसान हो गया।

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Answered by Anonymous
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हिंदी गद्य साहित्य के सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रतापनारायण मिश्र का जन्म 1856 ई० में उत्तर प्रदेश के बैजे (उन्नाव) नामक गाँव में हुआ। वे भारतेंदु युग के प्रमुख साहित्यकार थे। उनके पिता संकटाप्रसाद एक प्रसिद्ध ज्योतिषी थे और अपने पुत्र को भी ज्योतिषी बनाना चाहते थे। किंतु मिश्र जी को ज्योतिष की शिक्षा रुचिकर नहीं लगी, पिता ने अंग्रेजी पढ़ने के लिए स्कूल भेजा किंतु वहाँ भी उनका मन नहीं रमा। लाचार होकर उनके पिता जी ने उनकी शिक्षा का प्रबंध घर पर ही किया।

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