कन्या भ्रूण हत्या पर कविता संग्रह। Kanya Bhrun Hatya par Poem
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गर्भस्थ बेटी मां से यही पुकार करती है
हे मां ! मेरे प्राण बेवजह क्यों हरती है
यदि मेरी मौत से तेरी दुनिया आबाद रहे
तो यह बेटी दुआओं से तेरा दामन भरती है।
कोख में पल रहे भ्रूण से आज क्यों है दूरी
बेटी के जन्म का अधिकार छीनने की कैसी है मजबूरी
बेटियां इसी तरह मरती रही तो याद रखना
बहू के संग बेटे की गृहस्थी बसाने की हसरत रहेंगी अधूरी।
आज नारी अपने ही अस्तित्व को नकार रही है
अभिशाप है बेटिया धरती पर पुकार रही है
हद से गुजर कर शर्मसार हो गई है मां की ममता
जन्म से पहले ही मासूम को कोख में मार रही है।
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क्यों भ्रूण हत्या का चक्कर सिर पर मंडरा रहा है
नारियां ही नारी की क्यों दुश्मन बन रही है
एक दूजे से यह वादा करते हैं हम अभी
भ्रूण हत्या ने अपना योगदान देंगे नहीं कभी
अगर हमारे मां-बाप में भी भ्रूण हत्या की होती
तो हमारे जीवन की ज्योत कब की बुझ गई होती।
भ्रूण हत्या से बढ़कर कोई पाप नहीं होता
हैवान को अपने किए पर पश्चाताप नहीं होता
बेबस मां को कोख उजाड़ने पर मजबूर कर दे
ऐसा निर्दयी असल में इंसान नहीं होता।
मत मारो बिटिया को, घर कैसे बनाओगे
नहीं संभले तो एक दिन पछताओगे
बेटी है कुल की शान बेटी है घर का मान
बेटा बेटी है समान, कन्या है एक वरदान।
अब भी संभल जाओ, भ्रूण हत्या ना करो
आत्महत्या का, त्याग तुम करो
निर्दोष प्राणी को कभी मत मारो
कभी मत मारो, भ्रृण जीवन तारों।
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मां मोम सा कोमल मन तेरा, कैसे पत्थर का हो गया
अभी तेरे गर्भ में आई ही थी, कैसे वध मेरा हो गया
जिसे तूने अपने खून से सींचा, क्या मैं वह क्यारी ना थी
होगी सभी को बेटे की आस, पर क्या मैं तुझको प्यारी ना थी।
बेटे से क्यों मोह है इतना, मुझसे मां क्यों इतना डर
अपना लूंगी मैं भी तो मां, तेरे सारे दुख और दर्द!
कोई नहीं एक दूसरे से कम
हीरा अगर बेटा है तो बेटी नहीं मोती से कम ।
अगर हीरा है बेटा तो मोती है बेटी
एक कुल रोशन करेगा बेटा,
पर दो कुलों की लाज रखती है बेटी।
बेटा तब तक हैं बेटा, जब तक ना बन जाता वर
बेटी सदगुण की पेटी, बेटी रहती जीवन भर
ममता का गला घोट क्यों, बेटे पर मां दीवानी
घटती संख्या नारी की है आज चुनौती भारी।
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यह दुनिया अगर गुलशन है तो नारी है उसकी माली
वह झुक जाए तो सीता उठ जाए तो चंडी काली ।
भारत माता के वतन में देखो कैसी नादानी
कन्या भ्रूण की हत्या युगों की क्रूर कहानी।
उठो बहनों यह प्रण लो, यह पाप नहीं होने देंगे
एक नन्ही सुगंधित कली को यूंही नहीं सोने देंगे।
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--- कन्या भ्रूण हत्या पर एक कविता---
कोर्ट में एक अजीब मुकदमा आया
एक सिपाही एक कुत्ते को बांध कर लाया
सिपाही ने जब कटघरे में आकर कुत्ता खोला
कुत्ता रहा चुपचाप, मुँह से कुछ ना बोला
…
नुकीले दांतों में कुछ खून-सा नज़र आ रहा था
चुपचाप था कुत्ता, किसी से ना नजर मिला रहा था
फिर हुआ खड़ा एक वकील
देने लगा दलील
बोला, इस जालिम के कर्मों से यहाँ मची तबाही है
इसके कामों को देख कर इन्सानियत घबराई है
ये क्रूर है, निर्दयी है, इसने तबाही मचाई है
दो दिन पहले जन्मी एक कन्या, अपने दाँतों से खाई है
अब ना देखो किसी की बाट
आदेश करके उतारो इसे मौत के घाट
जज की आँख हो गयी लाल
तूने क्यूँ खाई कन्या, जल्दी बोल डाल
तुझे बोलने का मौका नहीं देना चाहता
लेकिन मजबूरी है, अब तक तो तू फांसी पर लटका पाता
जज साहब, इसे जिन्दा मत रहने दो
कुत्ते का वकील बोला, लेकिन इसे कुछ कहने तो दो
फिर कुत्ते ने मुंह खोला
और धीरे से बोला
हाँ, मैंने वो लड़की खायी है
अपनी कुत्तानियत निभाई है
कुत्ते का धर्म है ना दया दिखाना
माँस चाहे किसी का हो, देखते ही खा जाना
पर मैं दया-धर्म से दूर नही
खाई तो है, पर मेरा कसूर नही
मुझे याद है, जब वो लड़की छोरी कूड़े के ढेर में पाई थी
और कोई नही, उसकी माँ ही उसे फेंकने आई थी
जब मैं उस कन्या के गया पास
उसकी आँखों में देखा भोला विश्वास
जब वो मेरी जीभ देख कर मुस्काई थी
कुत्ता हूँ, पर उसने मेरे अन्दर इन्सानियत जगाई थी
मैंने सूंघ कर उसके कपड़े, वो घर खोजा था
जहाँ माँ उसकी थी, और बापू भी सोया था
मैंने कू-कू करके उसकी माँ जगाई
पूछा तू क्यों उस कन्या को फेंक कर आई
चल मेरे साथ, उसे लेकर आ
भूखी है वो, उसे अपना दूध पिला
माँ सुनते ही रोने लगी
अपने दुख सुनाने लगी
बोली, कैसे लाऊँ अपने कलेजे के टुकड़े को
तू सुन, तुझे बताती हूँ अपने दिल के दुखड़े को
मेरे पास पहले ही चार छोरी हैं
दो को बुखार है, दो चटाई पर सो रही हैं
मेरी सासू मारती है तानों की मार
मुझे ही पीटता है, मेरा भरतार
बोला, फिर से तू लड़की ले आई
कैसे जायेंगी ये सारी ब्याही
वंश की तो तूने काट दी बेल
जा खत्म कर दे इसका खेल
माँ हूँ, लेकिन थी मेरी लाचारी
इसलिए फेंक आई, अपनी बिटिया प्यारी
कुत्ते का गला भर गया
लेकिन बयान वो पूरे बोल गया
बोला, मैं फिर उल्टा आ गया
दिमाग पर मेरे धुआं सा छा गया
वो लड़की अपना, अंगूठा चूस रही थी
मुझे देखते ही हंसी, जैसे मेरी बाट में जग रही थी
कलेजे पर मैंने भी रख लिया था पत्थर
फिर भी काँप रहा था मैं थर-थर
मैं बोला, अरी बावली, जीकर क्या करेगी
यहाँ दूध नही, हर जगह तेरे लिए जहर है, पीकर क्या करेगी
हम कुत्तों को तो, करते हो बदनाम
परन्तु हमसे भी घिनौने, करते हो काम
जिन्दी लड़की को पेट में मरवाते हो
और खुद को इंसान कहलवाते हो
मेरे मन में, डर कर गयी उसकी मुस्कान
लेकिन मैंने इतना तो लिया था जान
जो समाज इससे नफरत करता है
कन्याहत्या जैसा घिनौना अपराध करता है
वहां से तो इसका जाना अच्छा
इसका तो मर जान अच्छा
तुम लटकाओ मुझे फांसी, चाहे मारो जूत्ते
लेकिन खोज के लाओ, पहले वो इन्सानी कुत्ते
लेकिन खोज के लाओ, पहले वो इन्सानी कुत्ते
.........प्रस्तुत कविता मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार के फेसबुक पेज से ली गयी है
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Answer:
वो दिन था बड़ा ही खास…..,
जब मैं आयी थी अपने माता-पिता के घर बनकर उल्लास
खुशी से अपनाया था दोनों ने अपनी बेटी को
फिर क्यूँ था गम, मेरे जन्म पर इस समाज को
क्यों इस समाज के आँखों में खटकी थी मैं
आखिर क्यों इस समाज को बोझ सी लगी थी मैं
जबकि मैं तो थी अपने माता-पिता के लिए खुशियों की बहार
क्यों इस संसार ने बेटियों के जन्म पर सबको डराया है
क्यों मेरे जन्म पर मेरी माँ को दोषी ठहराया है
क्यों पहुँचा दिया गया मुझे और मेरी माँ के सपनो को शमशान
क्यों न कर सके वो बेटे की जगह बेटी के जन्म पर अभिमान
बेटे अगर होते हैं समाज की जान
तो बेटियाँ भी होती हैं अपने कुल की शान
वंश बढ़ाते हैं बेटे तो नाम रौशन करती हैं बेटियाँ
माता-पिता के लिए तो बेटा हो या बेटी
दोनों ही होते है उनके लिए उनकी आन, बान, शान
फिर क्यों कि़या जाता है जन्म देने से इंकार बेटी को
आखिर क्यों मार दिया जाता है गर्भ में हीं बेटी को
क्यों न इस मानसिकता को बदलकर, इस कुरीति खत्म करें हम
बेटे-बेटी का भेद मिटाकर मानवता पर गर्व करें हम
ताकि बेटियों को मिल सके सुरक्षित कल
ताकि लिंग भेद से मुक्त हो आने वाला कल
जिस दिन बेटी जन्म लेती है, वो दिन होता है बड़ा ही खास
क्योंकि बेटा-बेटी दोनों हीं होते हैं बहुत खास – नमिता कुमारी