प्रतिष्ठा के अनेक रुप होते हैं चाहे वह हासयपद ही क्यों ना हो ? आशय स्पष्ट करें
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Answer:
प्रतिष्ठा के अनेक रुप होते हैं चाहे वह हासयपद
Explanation:
उपभोक्तावाद के बढ़ते प्रभाव ने मनुष्य को सुविधाभोगी बना दिया। परंतु आज सुख-सुविधा का दायरा बढ़कर, समाज में प्रतिष्ठा बढ़ाने का साधन बन गया है। सामाजिक प्रतिष्ठा विभिन्न प्रकार की होती है जिनके कई रूप तो बिल्कुल विचित्र हैं। हास्यास्पद का अर्थ है- हँसने योग्य। अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए ऐसे - ऐसे कार्य और व्यवस्था करते हैं कि अनायास हँसी फूट पड़ती है। जैसे अमरीका में अपने अंतिम संस्कार और अंतिम विश्राम-स्थल के लिए अच्छा प्रबंध करना ऐसी झूठी प्रतिष्ठा है जिसे सुनकर हँसी आती है।
आज का समाज उपभोक्तावादी समाज है जो विज्ञापन से प्रभावित हो रहा है। आज लोग केवल अपनी सुख-सुविधा के लिए उत्पाद नहीं खरीदते बल्कि उत्पाद खरीदने के पीछे उनका मकसद समाज में अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा को कायम रखना है। उदाहरण के लिए पहले केवल तेल-साबुन तथा क्रीम से हमारा काम चल जाता था लेकिन आज प्रतिष्ठित बनने की होड़ में लोग सबसे कीमती साबुन, फेस-वॉश का इस्तेमाल कर रहे हैं।
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उत्तर:
आज के उपभोक्तावादी पूंजीवादी समाज में झूठी प्रतिष्ठा और शानू शपथ ही सब कुछ बन चुकी है भले ही वह कितनी ही हास्यास्पद क्यों ना हो ।
व्याख्या:
- जब से मनुष्य ने समाज का गठन किया तब से उसने प्रकृति के संसाधनों का उचित संग्रह व प्रयोग करना भी सीखा। धीरे धीरे जैसे-जैसे मानक सभ्यताएं विकसित हुई वैसे मनुष्य ने तकनीक के साधनों के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों से नवीन उपकरण व नवीन उत्पादन बनाने शुरू किए। धीरे-धीरे आवश्यकता के उत्पादन की यही प्रक्रिया मान सम्मान, शानो-शौकत प्रतिष्ठा आदि की होड़ में बदल गई। पहले यातायात के साधनों का अविष्कार इसलिए किया गया ताकि मनुष्य कम समय में लंबी दूरी सुविधाजनक व सुरक्षित रूप से तय कर सके। परंतु वर्तमान में हम देखते हैं कि लोग महंगी कारें गाड़ियां आधी केवल अपनी प्रतिष्ठा बनाने के लिए खरीदते हैं। जबकि 4 लाख की कार भी वही कार्य करती है जो एक करोड़ की गाड़ी करती है। परंतु वर्तमान में प्रतिष्ठा पाने की होड़ में हास्यास्पद कार्य किए जा रहे हैं। मनुष्य इस उपभोक्तावादी व्यवस्था के चंगुल में फंसकर इस आभासी प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक गुजर जाने को तैयार है।
- प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित दोहन हास्यास्पद ही है मनुष्य अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए सभी संसाधनों को हाथ मा करता जा रहा है। और वह यह सोचता है कि तकनीक के माध्यम से वह सब कुछ नियंत्रित कर पाएगा प्रतिष्ठा का यह रूप हास्यास्पद नहीं तो और क्या है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि वर्तमान समय में प्रतिष्ठा के अनेक हास्यास्पद रूपी सामने आते हैं।
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