'प्रथमोपग्रहस्य' शब्दानाम संधि विच्छेद चिनुत्
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सामान्य रूप में संधि का अर्थ ‘मेल’ होता है। व्याकरण में इसका अर्थ दो वर्णों के मेल से उत्पन्न विकार होता है। दो वर्णों के निकट आने से उनमें ध्वनि-संबंधी मेल उत्पन्न हो जाता है, इसे ही संधि कहते हैं। जैसे:
धर्म + अर्थ = धर्मार्थ – यहाँ धर्म के अंत में “अ” और अर्थ के आरंभ में “अ” है। दोनों को मिलाकर “आ” हो गया। “अ” तथा “अ” दोनों वर्ण स्वर है।
परमानंद = परम + आनंद – “परम” और “आनंद” शब्दों से मिलकर “परमानंद” शब्द बना है। “परम” शब्द के अंत (व्+अ) का “अ” और आनंद शब्द का “आ” मिले हैं और “आ” बना है। इस प्रकार परम + आनंद = परमानंद बना है।
शिवालय = शिव + आलय – “शिव” और ‘”आलय” शब्दों से मिलकर “शिवालय” शब्द बना है। शिव शब्द के अंत (व्+अ) का “अ” और आलय शब्द “का” ‘आ’ मिले हैं और “आ’ बना है। इस प्रकार शिव + आलय = शिवालय बना है।
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Pratham + upgrahsya
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