पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं,
द्वार दिखा दूंगा फिर उनको।
हैं मेरे वे जहाँ अनंत-
अभी न होगा मेरा अंत।
(i) 'तंद्रालस लालसा' क्या है?
poem dhvani
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पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा
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