History, asked by nk5033372, 11 months ago

पुष्टिमार्ग का जहाज किसे कहा जाता है​

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Answered by MotiSani
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Answer:

पुष्टिमार्ग का जहाज कवी सूरदास जी को कहा जाता है।

Explanation:

कवी सूरदास जी को पुष्टिमार्ग का जहाज कहने के पीछे मुख्य कारण है कि उन्हें यहाँ पर उनके गुरु/आचार्य श्री वल्लभाचार्य जी ने उन्हें दीक्षा दे कर कृष्णलीला गाने की आज्ञा दी थी।

सूरदास जी का जन्म आगरा के समीप रुनक्ता नामक स्थान पर हुआ और उनके पिता श्री रामदास जी एक गायक थे। वह एक गरीब ब्राहमण परिवार से ताल्लुक रखते थे। सूरदास जी अष्टछाप कवियों में से एक थे।

Answered by Anonymous
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Answer:

वल्लभाचार्य द्वारा प्रतिपादित शुद्धाद्वैतवाद दर्शन के भक्तिमार्ग को पुष्टिमार्ग कहते हैं।

Explanation:

भारत मैं सूरदास जी को पुष्टिमार्ग का जहाज कहा जाता है उनका जन्म 1478 ईस्वी में मथुरा आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक गांव में हुआ था। कुछ लोगों का कहना है कि सूरदास जी का जन्म सीही नामक ग्राम में एक ग़रीब सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बाद में वह आगरा और मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे। सूरदास जी के पिता श्री रामदास गायक थे। सूरदास जी के जन्मांध होने के विषय में भी मतभेद हैं। आगरा के समीप गऊघाट पर उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षा दे कर कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास जी अष्टछाप कवियों में एक थे। सूरदास जी की मृत्यु गोवर्धन के पास पारसौली ग्राम में 1583 ईस्वी में हुई।

भक्ति के क्षेत्र में महापुभु श्रीवल्‍लभाचार्य जी का साधन मार्ग पुष्टिमार्ग कहलाता है। पुष्टिमार्ग के अनुसार सेवा दो प्रकार से होती है - नाम-सेवा और स्‍वरूप-सेवा। स्‍वरूप-सेवा भी तीन प्रकार की होती है -- तनुजा, वित्तजा और मानसी। मानसी सेवा के दो प्रकार होते हैं - मर्यादा-मार्गीय और पुष्टिमार्गीय। मर्यादा-मार्गीय मानसी-सेवा पद्धति का आचरण करने वाला साधक जहाँ अपनी ममता और अहं को देर करता है, वहाँ पुष्टि-मार्गीय मानसी-सेवा पद्धति वाला साधक अपने शुद्ध प्रेम के द्वारा श्रीकृष्‍ण भक्ति में लीन हो जाता है और उनके अनुग्रह से सहज में ही अपनी वांक्षित वस्‍तु प्राप्‍त कर लेता है।

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