Hindi, asked by saiharshitham1661, 9 months ago

पेट ही को पचत, बेचत बेटा - बेटकी तुलसी के युग का ही नहीं आज के युग का भी सत्य है। भुखमरी में किसानों की आत्महत्या और संतानों (खासकर बेटियों) को भी बेच डालने की ह्रदय - विदारक घटनाएँ हमारे देश में घटती रही हैं। वर्तमान परिस्थितयों और तुलसी के युग की तुलना करें।

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Answered by bhatiamona
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पेट ही को पचत, बेचत बेटा - बेटकी तुलसी के युग का ही नहीं आज के युग का भी सत्य है।

तुलसी के युग में भी आर्थिक तंगी के कारण लोग बेटा-बेटी बेचने जैसे अपराध करते थे , और आज भी ऐसा ही है | आज के युग में भी ऐसा ह चल रहा है| गरीब पहले गरीब था और आज भी गरीब है  और अमीर और भी अमीर हो रहा है| बच्चों द्वारा आज भी मजदूरी करवाई जाती है , बेटियों के साथ भेद-भाव किया जाता है|

किसान कितनी भी मेहनत करे, उसकी मेहनत प्रकृति पर निर्भर करती है। यदि प्रकृति उस पर मेहरबान है, तो वह कुछ समय के भोजन का इंतज़ाम कर सकता है लेकिन प्रकृति ज़रा-सी नाराज़ हो गई, तो उसकी मेहनत का नाश होने में कुछ पल नहीं लगती हैं।

यह स्थिति शायद आने वाले युगों में भी न बदले। हम कितनी तरक्की कर लें। बहुत सारी बाते और चीज़े नहीं बदली है जो पहले थी वही चलती आ रही है|

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