"पेट-पीठ मिलकर हैं एक
चल रहा लकुटिया टेक।"
इन पंक्तियों में कवि कौन-सा भाव व्यंजित करना चाहता है?
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इन पंक्तियों में कवि कह रहा है कि एक गरीब जो कि भूख के मारे इतना दुबला प्रतीत हो रहा है कि मानो उसके अंदर की तरफ धंसे हुए पेट पीठ से मिलकर एक हो जाएंगे , और वह गरीब भिखारी लाठी के सहारे चल रहा है।
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