Hindi, asked by hkumar50768, 5 hours ago

पेट्रोल व डीजल की बढ़ती कीमतों का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है​

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Answered by JasmeetSingh07
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पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों ने मध्यम वर्गीय परिवारों के बजट पर काफी असर डाला है. पिछले साल लॉकडाउन ने आर्थिक गतिविधियों पर असर डाला था. अर्थव्यवस्था खुलने के बाद से पेट्रोल और डीजल की मांग बढ़ रही है. लेकिन, इनकी बढ़ती कीमतों ने मुश्किल पैद कर दी है. उधर, खाड़ी के देशों में चल रहे तनाव से कच्चे तेल की आपूर्ति में भी बाधा आई है. तेल उत्पादक देशों के संगठन 'ओपेक' ने आपूर्ति में कमी की है. इससे पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ी हैं.

क्या होगा भारत पर प्रभाव?

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है. हमारे यहां सबसे अधिक तेल सऊदी अरब और इराक से आयात किया जाता है. तेल का इतना बड़ा आयातक देश होने की वजह से भारत पर विदेशी मुद्रा भंडार का अतिरिक्त भार पड़ता है. आरबीआई की एक रिपोर्ट कहती है कि कच्चे तेल के दामों में प्रति बैरल $10 की कीमत वृद्धि होने से भारत सरकार का 12.5 बिलियन डॉलर का घाटा बढ़ जाता है. भारत 100 बिलियन डालर से अधिक का खर्च पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर करता है. वर्तमान में बढ़ते कच्चे तेल के दाम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही रूप से देश की अर्थव्यवस्था में महंगाई का कारण बन जाते हैं. पिछले सालों में पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में ऐतिहासिक बढ़ोतरी हुई है.

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एलपीजी गैस के आकड़ों को देखे तो पता चलता है कि पिछले 7 सालों में इसका दाम दोगुना हो गया है. 1 मार्च 2014 को एक एलपीजी का दाम ₹410.5 था. अब यह ₹819 प्रति सिलिंडर हो चुका है. मार्च 2014 की तुलना में 'केरोसिन आयल' भी ₹14.96 प्रति लीटर से बढ़कर ₹35.35 प्रति लीटर हो चुका है. मई 2014 में कच्चे तेल की बेस प्राइस बिना किसी अतिरिक्त कर के ₹45.12 रुपए थी और कर को सम्मिलित करते हुए, पेट्रोल ₹71-₹72 प्रति लीटर बिकता था.

आज इसकी बेस प्राइस ₹26.7 रुपए हैं और विभिन्न करों को शामिल करके पेट्रोल ₹90 से ₹100 के बीच में बिक रहा है. वर्तमान में केंद्र सरकार ₹32.90 प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी पेट्रोल पर और ₹31.80 प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी डीजल पर वसूल रही है. वर्ष 2013 में डीजल और पेट्रोल के जरिए कुल ₹52, 537 करोड रुपए कर के रूप में वसूले गए थे. वही 2019-20 में यह बढ़कर 2.94 लाख करोड़ रुपए हो चुका है. वर्ष 2013-14 मई कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत $104.04 प्रति बैरल थी जो आज वर्तमान में $60 से $61 प्रति बैरल चल रही है.

तेल के दामों में बेतहाशा वृद्धि की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ने वाला है. तेल के बढ़ते दाम महंगाई का एक बहुत बड़ा कारण बनेंगे और आम जनता की कमाई और खर्च में बड़ी गिरावट पैदा करेंगे. कोविड-19 की आर्थिक तबाही ने पहले ही आम जनता की कमाई में बड़ी कटौती की है और तेल के बढ़ते दाम इस प्रभाव को दोगुना कर देंगे. लेकिन सरकार भी यहां बहुत कुछ कर नहीं सकती है. आर्थिक गतिविधियों के बंद रहने की वजह से पहले ही वित्तीय घाटा अप्रत्याशित रूप से बढ़ा हुआ है.

Answered by deadn0004
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