पिता शीर्षक पर स्वरचित कहानी लिखिए
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यूँ तो दुनिया के सारे गम मैं हंस के ढो लेता हूँ, ...
मार-मार के पत्थर को एक जौहरी हीरा बनाता है, ...
हाँ मैं खुश था उस बचपन में जब आपके कंधे पर बैठा था, ...
हर पल अहसास होता है आप यहाँ ही हों जैसे, ...
गिर-गिर कर आगे बढ़ता था जब मैं बचपन में ...
कब का बर्बाद हो गया होता मैं ...
जब भी कमी खलती है आपकी ...
सुधार लूँ मैं गुस्ताखियाँ जिन्दगी की
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