पाठ-१
हमें न बाँधो प्राचीरों मे
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ham to bande ge prcharo me
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पिंजड़े में बंद पंछी काफी दुःखी हैं। उन्हें डर है कि वे अपनी उड़ान न भूल जाएं। उन्हें लगता है कि पेड़ों के ऊपरी सिरे पर झुलने का उनका सपना यूं ही बेकार हो जाएगा। पंछी नीले आसमान की सीमा पाने का अरमान रखते हैं, जहां वे ताड़ों जैसे अनार के दाने चुग सकें। लेकिन पिंजड़े की स्वर्ण शृंखला ने उनकी सारी इच्छाओं पर पानी फेर दिया है। वे परतंत्र हैं। उन्मुक्त होकर उड़ नहीं सकते। शायद इसीलिए वे दुःखी हैं, व्यथित हैं।
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