Hindi, asked by cacoon762, 1 year ago

पाठ की तीसरी साखी- जिसकी एक पंक्ति हैं 'मनवा तो चहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहि' के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं?

Answers

Answered by nikitasingh79
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इस साखी के द्वारा कबीर जी कहते हैं कि हमारा मन अत्यंत चंचल है। यह दसों दिशाओं में यानी की चारों ओर लगातार भ्रमण करता रहता है। इसी कारण हमारा मन किसी काम में नहीं लग पाता। एक ही चीज़ को बार बार समझ कर भी उसका पूर्ण ज्ञान नहीं हो पाता। मन अपनी गति में रहता है। उसे और कुछ भी याद नहीं रहता। मन के बंधन में बंधकर मनुष्य सबकुछ भूल जाता है।आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।‌।
Answered by raghusampradaya9
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पाठ की तीसरी साखी में कबीरदास जी यह कहना चाहते हैं कि हमें ईश्वर को मन से याद करना चाहिए। उस समय हमारा मन दसदिशाओं में भटकना नहीं चाहिए। यह ठीक नहीं है।हमें हमारा मन को काबू में रख कर ईश्वर का स्मरण करना चाहिए।

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