पाठ में अनेक अंश बाल सुलभ चंचलताओं, शरारतों को बहुत रोचक ढंग से उजागर करते हैं। आपको कौन सा अंश अच्छा लगा और क्यों?
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पाठ (आवारा मसीहा) में अनेक अंश बाल सुलभ चंचलताओं, शरारतों को बहुत रोचक ढंग से उजागर करते हैं। मुझे निम्न अंश अच्छा लगा क्योंकि :
लेखक के अनुसार बालक शरत् बचपन में बहुत शरारती था। उसमें निडरता बुद्धिमता समझदारी और आजादी के गुण थे। शरत को अपनी स्वतंत्रता बहुत प्रिय थी । वह अधिक समय तक एक जगह टिक कर नहीं रह पाता था। एक बार देवानंदपुर के स्कूल में उसकी शरारतों के कारण पंडित जी ने उसकी आधी छुट्टी बन कर दी थी ।
पंडित ने भोलू नाम के लड़के को उसकी देखरेख के लिए बैठा दिया। शरत पाठशाला के कमरे के एक कोने में फटी हुई दरी पर बैठा था, उसके हाथ में स्लेट थी । वह कभी आंखें खोलता कभी बंद करता था। अंत में वह गहरी सोच में डूब गया कि यह समय तो गुड्डी उड़ाने के लिए है। उसे बाहर निकलने के लिए एक युक्ति सूझ गई । वह स्लेट लेकर भोलू के पास गया और कहने लगा कि उसे यह सवाल नहीं आता। भोलू जिस बेंच पर बैठता था वह टूटी हुई थी और पास में चूने का ढेर लगा हुआ था। भोलू उसका सवाल देखने लगा। उस समय एक घटना घट गई भोलू चुने के ढेर पर गिर पड़ा और शरत गायब हो गया। इस घटना से यह पता चलता है कि बालक शरत अपनी आजादी के लिए कुछ भी कर सकता था। शरत को बंधन में रहना पसंद नहीं था। उसे एक आजाद पक्षी की तरह खुले वातावरण में रहना पसंद था।
आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।
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Explanation:
पाठ शरतचंद्र की बहुत-सी बाल सुलभ चंचलताओं और शरारतों से भरा पड़ा है। उनका तितली पकड़ना, तालाब में नहाना, उपवन लगाना, पशु-पक्षी पालना, पिता के पुस्तकालय से पुस्तकें पढ़ना और पुस्तकों में दी गई जानकारी का प्रयोग करना। एक बार तो उन्होंने पुस्तक में साँप के वश में करने का मंत्र तक पढ़कर उसका प्रयोग कर डाला। शरतचंद्र द्वारा उपवन लगाना और पशु-पक्षी पालने वाला अंश अच्छा लगा। यह ऐसा अंश है, जो आज के बच्चों में दिखाई नहीं देता है। शरतचंद्र जैसे कार्यों को करके हम प्रकृति के समीप आते हैं। इससे हमारा पशु-पक्षियों के प्रति प्रेमभाव बढ़ता है। आज इमारतों के जंगल में बच्चों को ऐसे कार्य करने के लिए ही नहीं मिलते हैं। आज के समय में बाल सुलभ क्रियाओं में बहुत परिवर्तन आएँ हैं। बच्चे प्रकृति के समीप कम और गेजेट्स के समीप पहुँच गए हैं। उनके हाथ में बचपन से ही ये आ जाते हैं। इनमें वे विभिन्न प्रकार की शरारतें करते दिख जाते हैं। वे इसका दुरुप्रयोग कर रहे हैं। यह उनके सही नहीं है। समय बदल रहा है और आधुनिकता का ये जहर बच्चों के बचपन को निगल रहा है।