पृथ्वी ऊष्मायन पर टिप्पणी लिखिए ।
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ग्रीन हाउस गैसों (green house gases) के द्वारा उत्पन्न ग्रीन हाउस प्रभाव (green house effect) ही पृथ्वी ऊष्मायन (global warming) का कारण है। पृथ्वी पर पहुँचने वाली प्रकाशीय ऊर्जा को तो ये गैसें क्षोभमण्डल में आने में कोई बाधा नहीं डालतीं किन्तु ऊष्मा के रूप में जब यह ऊर्जा वापस विकरित होती है तो उसके कुछ भाग को वायुमण्डल में ही रोके रखती हैं अथवा ये ऊष्मारोधी गैसें पृथ्वी से विसरित होकर आयी ऊष्मा का कुछ भाग अवशोषित कर लेती हैं एवं पुनः धरातल को वापस कर देती हैं। इस प्रक्रिया में वायुमण्डल के निचले भाग में अतिरिक्त ऊष्मा एकत्रित हो जाती है। विगत कुछ वर्षों से मानवीय क्रिया-कलापों के कारण इन ऊष्मारोधी गैसों की मात्रा वायुमण्डल में बढ़ जाने के कारण वायुमण्डल के औसत ताप में वृद्धि हो गयी है। इस प्रकार पृथ्वी के औसत तापमान में बढ़ोतरी को पृथ्वी ऊष्मायन या भूमण्डलीय ऊष्मायन या विश्व तापन (global warming) कहते हैं। विश्व मौसम संगठन के अनुसार भूतल का औसत तापमान पिछली शताब्दी के पूरा होते-होते लगभग 0.60° सेल्सियस तक बढ़ा है। तापमान में यह वृद्धि मुख्य रूप से 1910 से 1945 ई० और 1976 से 2000 ई० के मध्य हुई है। इस प्रकार लगभग सम्पूर्ण विश्व में 90 का दशक सबसे गर्म दशक और 1961 ई० के बाद क्रमशः 1980,81, 83, 86 एवं 1988 ई० का वर्ष सबसे गर्म वर्ष रहा है। इस दशक तक तुलनात्मक रूप में समुद्री जल का ताप भी बढ़ा है। ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से उत्पन्न संकट सम्पूर्ण विश्व के लिए भयंकरतम समस्या है। इसके दुष्प्रभाव तथा दुष्परिणाम पृथ्वी पर उपस्थित जीवन के लिए ही खतरा सिद्ध हो सकते हैं। इस सबका परिणाम है। कि ऊँचे स्थानों पर अधिक वर्षा होने लगी है और उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में वर्षा में कमी आयी है। पिछली शताब्दी में समुद्री जल स्तर में 15 से 20 सेमी तक बढ़ोतरी हुई है। विश्व के कुछ स्थानों में ग्लेशियर (glaciers) का कुछ नीचे हो जाना भी वायुमण्डल के तापमान में वृद्धि का संकेत है। ग्लोबल वार्मिंग का सबसे भयंकर दुष्परिणाम पर्यावरण में जलवायु तथा मौसम परिवर्तन के रूप में। प्रकट होता है। जैसे-जैसे पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो रही है इस प्रकार के परिवर्तन के परिणाम सामने आ भी रहे हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में, लगभग 20 वर्ष पूर्व जहाँ हिमपात होता था, उन स्थानों पर हिमपात होना बन्द हो गया है अथवा इतनी कम मात्रा में होने लगा है कि उसका कोई लाभ नहीं रह गया है। इस प्रकार के परिवर्तनों के कारण प्रतिवर्ष विभिन्न मौसमों में आकस्मिक तापमान की वृद्धि या कमी विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं; जैसे-तूफान, चक्रवात, अतिवृष्टि, सूखा आदि के रूप में सामने आ रही है। 1990 से 2100 ई० तक पृथ्वी के तापमान में वर्तमान गति से 5° सेल्सियस तक बढ़ जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है। इस प्रकार की तापमान में वृद्धि से वर्षा के प्रारूप में अत्यधिक परिवर्तन आएँगे विशेषकर निचले अक्षांशों (latitudes) पर वर्षा में अधिक कमी हो सकती है। फलस्वरूप सूखा, बाढ़ जैसी आपदाओं में वृद्धि हो सकती है। बढ़ती गर्मी और मानसून की अनिश्चितता से कटिबन्धीय क्षेत्रों में पैदावार में कमी आ सकती है। संयुक्त राष्ट्र ने अपने पर्यावरण कार्यक्रम में उल्लेख कियां है; आज मानवता के समक्ष भूमण्डलीय ऊष्मायन (ग्लोबल वार्मिंग) सबसे भयावह खतरा है। इसके लिए मनुष्य की आर्थिक विकास की गतिविधियाँ उत्तरदायी हैं। ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव सम्पूर्ण पारिस्थितिक तन्त्र (ecological setup) पर पड़ता है। इससे जीवमण्डल का कोई भी अंश प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है; परिणामस्वरूप पर्वतों से बर्फ पिघलेगी, बाढ़े आयेंगी, समुद्री जल स्तर बढ़ेगा, स्वास्थ्य सम्बन्धी विपदाएँ बढ़ेगी, असमय मौसमी बदलाव होंगे तथा जलवायु में भयंकर परिवर्तनों को बढ़ावा मिलेगा। एक अध्ययन के अनुसार प्रति 1° सेल्सियस तापमान की वृद्धि से दक्षिण-पूर्वी एशिया में चावल का उत्पादन 5 प्रतिशत कम हो जाएगा। उपर्युक्त के अतिरिक्त अन्य अनेक दुष्परिणाम; जैसे- अनावृष्टि, अतिवृष्टि आदि की सम्भावनाओं का बढ़ना, विभिन्न प्रकार के रोगों में वृद्धि, क्षोभमण्डल (troposphere) के बाहरी भाग में उपस्थित पृथ्वी के रक्षा कवच अर्थात् ओजोनमण्डल (ozonosphere) अथवा ओजोन परत (ozone layer) की मोटाई में कमी होने की सम्भावना आदि है। ओजोन परत के क्षीण होने से पृथ्वी पर पराबैंगनी किरणों के प्रभाव में वृद्धि हो जाएगी जिससे त्वचा कैन्सर, मोतियाबिन्द आदि रोगों में वृद्धि होती है, शरीर का प्रतिरोधी तन्त्र हासित होता है, सूक्ष्म जीव; विशेषकर पादपप्लवकों (phytoplanktons) के नष्ट होने से जलीय पारिस्थितिक तन्त्र पूर्णत: नष्ट हो जायेंगे। भूमण्डलीय ऊष्मायन को कम करने के उपाय पृथ्वी ऊष्मायन (ग्लोबल वार्मिंग) को रोकने के लिए मानवीय क्रिया-कलापों पर प्रतिबन्ध लगाना आवश्यक है जिनसे ग्रीन हाउस गैसों; जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), नाइट्रस ऑक्साइड (N2O), मेथेन (CH4), क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स (CFCs), हैलोजन्स (हैलोकार्बन्स Clx, Fx, Brx) आदि की वृद्धि को रोकने में सहायता मिल सकती है।Read more on Sarthaks.com - https://www.sarthaks.com/487058/