पेड़ों के झुनझुने,
बजने लगे;
लुढ़कती आ रही है
सूरज की लाल गेंद।
उठ मेरी बेटी सुबह हो गई।
तूने जो छोड़े थे,
गैस के गुब्बारे,
तारे अब दिखाई नहीं देते,
(जाने कितने ऊपर चले गए)
चांद देख, अब गिरा, अब गिरा,
उठ मेरी बेटी सुबह हो गई।
तूने थपकियां देकर,
जिन गुड्डे-गुड्डियों को सुला दिया था,
टीले, मुंहरंगे आंख मलते हुए बैठे हैं,
गुड्डे की ज़रवारी टोपी
उलटी नीचे पड़ी है, छोटी तलैया
वह देखो उड़ी जा रही है चूनर
तेरी गुड़िया की, झिलमिल नदी
उठ मेरी बेटी सुबह हो गई। पूरी कविता का भाव बताईए
तेरे साथ थककर
सोई थी जो तेरी सहेली हवा,
जाने किस झरने में नहा के आ गई है,
गीले हाथों से छू रही है तेरी तस्वीरों की किताब,
देख तो, कितना रंग फैल गया
उठ, घंटियों की आवाज धीमी होती जा रही है
दूसरी गली में मुड़ने लग गया है बूढ़ा आसमान,
अभी भी दिखाई दे रहे हैं उसकी लाठी में बंधे
रंग बिरंगे गुब्बारे, कागज़ पन्नी की हवा चर्खियां,
लाल हरी ऐनकें, दफ्ती के रंगीन भोंपू,
उठ मेरी बेटी, आवाज दे, सुबह हो गई।
उठ देख,
बंदर तेरे बिस्कुट का डिब्बा लिए,
छत की मुंडेर पर बैठा है,
धूप आ गई।
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इस कविता में एक माँ अपनी बच्ची को निद्रा से उठा रही है। वह कह रही है कि अब सुबह हो गयी है। बेटी तू उठ जा। तारे अब दिखाई नहीं दे रहे है , चाँद अब छुप गया है अर्थात सुबह हो गयी है बेटी अब तो उठ जा। वह अपनी बेटी को बड़ी ही प्यार से अलग अलग चीज़ों का वर्णन कर उठा रही है। वह बाटी को एक प्रकार से प्यार भरा डर महसूस करा रही है यह कह के की बेटी तेरा बिस्कुट का डिब्बा एक बन्दर ले गया है और मुंडेर पर बैठ कर खा रहा है। यह दृश्य बहुत ही काबिलिय तारीफ है। इस कविता में वह हर प्रकार दिखाया गया है जिस जिस प्रकार से एक माँ अपनी बच्ची को उठती है।
please mark it as brainliest answer...
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shreyatripathi:
please mark it as brainliest answer
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sure KO ludakti GED Ku kaha gaya hi
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