पेड़ से रबड़ कैसे बनता है
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पेड़ों के धड़ के छेवने, या काटने, से रवरक्षीर निकलता है। रबरक्षीर को इकट्ठा करते हैं। रबरक्षीर में शुष्क रबर की मात्रा लगभग 32 प्रतिशत रहती है। रबरक्षीर पानी से हल्का हाता है। इसका विशिष्ट घनत्व 0.978 से 0.987 होता है। रबरक्षीर में रबर के अतिरिक्त रेज़िन, शर्करा, प्रोटीन, खनिज लवण और एंज़ाइम रहते हैं। पेड़ से निकलने के बाद रबरक्षीर का परीक्षण आवश्यक है, अन्यथा रबरक्षीर का स्कंदन होने से जो रबर प्राप्त होता है वह उत्कृष्ट कोटि का नहीं होता। परिरक्षण के लिए 0.5 से 1.0 प्रतिशत अमोनिया, फॉर्मेलिन तथा सोडियम, या पोटैशियम हाइड्राक्साइड का प्रयोग होता है। इनमें अमोनिया सर्वश्रेष्ठ होता है। रबरक्षीर कोलॉयड सा व्यवहार करता है। इसका पीएच 7 होता है और अमोनिया से 8 से 11 हो जाता है।
रबर प्राप्ति के लिए रबरक्षीर का स्कंदन होता है। स्कंदन की पुरानी रीति है रबरक्षीर को मिट्टी के गड्ढे में गाड़ देना। पानी बहकर मिट्टी में मिल जाता है और ठोस रबर गड्ढे में रह जाता है। दूसरी रति है पेड़ के धड़ पर ही रबरक्षीर को स्कंदन के लिए छोड़ देना। पानी सूखकर निकल जाता है और रबर रह जाता है। तीसरी रति है धुआँ से रबरक्षीर का स्कंदन करना। काठ के पात्र में रबरक्षीर को रखकर धुएँ के घर में रख देते हैं। रबरक्षीर पीला और दृढ़ हो जाता है। उसपर दूसरा स्तर जमाकर 'पारा रबर' प्राप्त कर सकते हैं। आधुनिक रीति में स्कंदन के लिए रसायनक, अम्ल, अम्लीय लवण, सामान्य लवण, ऐल्कोहॉल इत्यादि उपयुक्त होते हैं। ऐसीटिक अम्ल, फॉर्मिक अम्ल और हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल उत्तम पाए गए हैं। अपकेंद्रित्र से भी स्कंदन होता है। विद्युत् प्रवाह भी स्कंदन करता है।