२.)
पहुचाते
Liv)
32
पवित्र अपवित्रता ती बलवती
है, जितना कि पर्वत्र पवित्रता । जो कु६ जमात
में ले रहा है वह केवल आच२०) के विकास
के अर्म में घेरा अन्तरात्मा वही काम
करती है,जो बाम पदार्थों के संबोग का
प्रतिबिम्ब होताहा निजको हम पवित्रालमा कहते
है। क्या पता है, किन-किन रूपों से निकल
वे अब उदय को प्राप्त हुरु
प्रश्न- उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिरिवका अपवा
मगळाश के पाठ और लेखक का नाम लिावर
आचरण
उत्तर पाठ का नाम →
की
लेखक का नाम सरदार पूसिंहा
रेखांकित अंश की व्याख्या कनिए ।
है।
-कर
सभ्यता
ليف
3ed2
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i cant understand this mixed indian languages
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