Hindi, asked by tarannumara190, 10 months ago

पक्षियों का उद्विकास​

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Answered by sarveshcpr
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Explanation:

परिवार की उत्पत्ति का उद्विकासीय सिद्धांत सर्वप्रथम अमरीकी मानवशास्त्री एलएच मॉर्गन ने प्रतिपादित किया था। इस संबंध में उन्होंने कहा कि समाज की प्रारंभिक अवस्था में परिवार एवं विवाह नाम की कोई संस्था नहीं थी। आरंभिक काल में यौन साम्यवाद की स्थिति थी। विवाह एवं परिवार का विकास इसके बाद के युगों में क्रमश: हुआ।

मॉर्गन ने अपने विचारों की पुष्टि के लिए त्योहारों के अवसर पर स्वेच्छाचार, पत्नी विनिमय, अतिथि सत्कार के निमित्त पत्नी भेंट, आदि तथ्यों का उल्लेख किया। मॉर्गन ने कहा कि आरंभिक अवस्था में बहन पत्नी बनी और यही समाज का नियम था। मॉर्गन ने परिवार के उद्विकास के पांच स्तरों का उल्लेख किया है। जो निम्नलिखित हैं।

1 समरक्त परिवार

परिवार के उद्विकास का यह पहला चरण माना जाता है। इस अवस्था में यौन संबंध के स्थापित नियमों का सर्वथा अभाव था। इस स्तर में भाई-बहन के बीच भी यौन संबंध होते थे। मॉर्गन ने उदाहरण के रूप में पॉलीनीजियन समाज का विशेष रूप से उल्लेख किया है।

2. समूह विवाह परिवार

इस चरण में परिवार में समूह विवाह का प््राचलन हुआ। एक परिवार के सभी भाइयों का संबंध, सभी बहनों के साथ होने की स्थितियां थी।ं पुनालुअन परिवार को मॉर्गन ने इस चरण में रखा।

3.सिस्माण्डियन परिवार

यह परिवार के विकास का तीसरा स्तर माना जाता है। इस परिवार के अंतर्गत एक पुरुष का विवाह एक स्त्री से होता था, लेकिन परिवार परिवार के सभी पुरुष सभी विवाहित स्त्रियों के साथ समान रूप से यौन संबंध स्थापित कर सकते थे।

4.पितृसत्तात्मक परिवार

इस चरण में परिवार में पुरुष की श्रेष्ठता होती थी। वह एक से अधिक पत्नियां रख सकता है। पुरुष के अधिकार स्त्रियों की तुलना में अधिक थे।हर कार्य पुरुष की मर्जी से होता था। मध्य एवं दक्षिण एशिया के देशों में इस प्रकार के परिवारों की आज भी प्रधानता है।

5. एक विवाही परिवार

परिवार के उद्विकास का अंतिम और आधुनिक स्तर एक विवाही परिवार है। इसके अंतर्गत एक पुरुष किसी भी एक स्त्री से विवाह करता है। हालांकि मॉर्गन के मुताबिक, एक विवाही परिवार भी समाज की अंतिम स्थिति नहीं है, इस किस्म के परिवार में भी परिवर्तन की संभावना रहेगी।

मॉर्गन के उपर्युक्त सिद्धांत की आलोचना यह कहकर की जाती है कि कई पशु-पक्षियों में भी हमें नर-मादा जोड़े के रूप में देखने को मिलते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि जब उनमें यौन साम्यवाद नहीं है तो मनुष्य जैसे विकसित प्राणी में यौन साम्यवाद को कैसे सही माना जा सकता है।

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