pani ke pradushit hone ke Karan aur upay points in Hindi
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जल प्रदूषण भारत के सामने खड़े बड़े संकटों में से एक है। इसका सबसे बड़ा स्रोत है, बिना ट्रीटमेंट किया सीवेज का पानी। यह साफ दिखता है। देखने के लिए ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है। प्रदूषण के कई अन्य स्त्रोत भी हैं। जैसे- खेतों से आता पानी, छोटे और अनियंत्रित उद्योगों से आने वाला पानी। हालात इतने गंभीर हैं कि भारत में कोई भी ऐसा जल स्रोत नहीं बचा हैं, जो जरा भी प्रदूषित नहीं हैं। हकीकत तो यह है कि देश के 80 प्रतिशत से ज्यादा जल स्त्रोत बहुत ज्यादा प्रदूषित हो चुके हैं। इनमें भी वह जल स्त्रोत ज्यादा प्रदूषित हैं, जिनके आसपास बड़ी संख्या में आबादी रहती है। गंगा और यमुना भारत की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है।
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भारत में जल प्रदूषण के बढ़ते स्तर के प्रमुख कारण निम्नानुसार हैं:
1- औद्योगिक कूड़ा
2- कृषि क्षेत्र में अनुचित गतिविधियां
3- मैदानी इलाकों में बहने वाली नदियों के पानी की गुणवत्ता में कमी
4- सामाजिक और धार्मिक रीति-रिवाज, जैसे पानी में शव को बहाने, नहाने, कचरा फेंकने
5- जहाजों से होने वाला तेल का रिसाव
6- एसिड रैन (एसिड की बारिश)
7- ग्लोबल वार्मिंग
8- यूट्रोफिकेशन
9- औद्योगिक कचरे के निपटान की अपर्याप्त व्यवस्था
10- डीनाइट्रिफिकेशन
भारत में जल प्रदूषण के प्रभावः
जिस जल स्त्रोत का पानी जरा-भी प्रदूषित है, उसके आसपास रहने वाले किसी भी और प्रत्येक जीवन पर जल प्रदूषण का किसी न किसी हद तक प्रतिकूल प्रभाव होता है। एक निश्चित स्तर पर प्रदूषित पानी फसलों के लिए भी नुकसानदेह साबित होता है। इससे जमीन की उर्वर क्षमता कम होती है। कुल मिलाकर कृषि क्षेत्र और देश को भी प्रभावित करता है। समुद्र का पानी प्रदूषित होता है तो उसका बुरा असर समुद्री जीवन पर भी होता है। जल प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण पानी की क्वालिटी में गिरावट होती है। इसके सेवन से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं।
हकीकत तो यह है कि भारत में, खासकर ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य के निम्न स्तर का एक बड़ा कारण जल प्रदूषण ही है। प्रदूषित पानी की वजह से कॉलरा, टीबी, दस्त, पीलिया, उल्टी-दस्त जैसी बीमारियां हो सकती है। भारत में पेट के विकारों से पीड़ित 80 प्रतिशत मरीज प्रदूषित पानी पीने की वजह से बीमार हुए हैं।
भारत में जल प्रदूषण का समाधान
जल प्रदूषण का सबसे अच्छा समाधान है, इसे न होने देना। इसका सबसे प्रमुख समाधान है मिट्टी का संरक्षण। मिट्टी के कटाव की वजह से भी जल प्रदूषित होता है। ऐसे में, यदि मिट्टी का संरक्षण होता है तो हम कुछ हद तक पानी का प्रदूषण रोक सकते हैं। हम ज्यादा से ज्यादा पौधे या पेड़ लगाकर मिट्टी के कटाव को रोक सकते हैं। खेती के ऐसे तरीके अपना सकते हैं, जो मिट्टी की सेहत की चिंता करें और उसे बिगाड़ने के बजाय सुधारे। इसके साथ ही जहरीले कचरे के निपटान के सही तरीकों को अपना भी बेहद महत्वपूर्ण है। शुरुआत में, हम ऐसे उत्पादों का इस्तेमाल न या कम करें जिनमें उन्हें नुकसान पहुंचाने वाले जैविक यौगिक शामिल हो। जिन मामलों में पेंट्स, साफ-सफाई और दाग मिटाने वाले रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है, वहां पानी का सुरक्षित निपटान बेहद जरूरी है। कार या अन्य मशीनों से होने वाले तेल के रिसाव पर ध्यान देना भी बेहद जरूरी है।
यह कहा जाता है कि – कारों या मशीनों से निकलने वाला- तेल का रिसाव भी जल प्रदूषण के प्रमुख कारकों में से एक है। इस वजह से कारों और मशीनों की देखभाल बेहद जरूरी है। नियमित रूप से यह देखा जाए कि तेल का रिसाव तो नहीं हो रहा। काम पूरा होने के बाद -खासकर जिन फैक्टरियों और कारखानों में तेल का इस्तेमाल होता है- खराब तेल को साफ करन या सुरक्षित निपटान या बाद में इस्तेमाल के लिए रखने में सावधानी बरतनी जरूरी है। यहां हम नीचे कुछ तरीके बता रहे हैं, जिसके जरिए इस समस्या को दूर किया जा सकता हैः
1- पानी के रास्ते और समुद्री तटों की सफाई
2- प्लास्टिक जैसे जैविक तौर पर नष्ट न होने वाले पदार्थों का इस्तेमाल न करें
1- औद्योगिक कूड़ा
2- कृषि क्षेत्र में अनुचित गतिविधियां
3- मैदानी इलाकों में बहने वाली नदियों के पानी की गुणवत्ता में कमी
4- सामाजिक और धार्मिक रीति-रिवाज, जैसे पानी में शव को बहाने, नहाने, कचरा फेंकने
5- जहाजों से होने वाला तेल का रिसाव
6- एसिड रैन (एसिड की बारिश)
7- ग्लोबल वार्मिंग
8- यूट्रोफिकेशन
9- औद्योगिक कचरे के निपटान की अपर्याप्त व्यवस्था
10- डीनाइट्रिफिकेशन
भारत में जल प्रदूषण के प्रभावः
जिस जल स्त्रोत का पानी जरा-भी प्रदूषित है, उसके आसपास रहने वाले किसी भी और प्रत्येक जीवन पर जल प्रदूषण का किसी न किसी हद तक प्रतिकूल प्रभाव होता है। एक निश्चित स्तर पर प्रदूषित पानी फसलों के लिए भी नुकसानदेह साबित होता है। इससे जमीन की उर्वर क्षमता कम होती है। कुल मिलाकर कृषि क्षेत्र और देश को भी प्रभावित करता है। समुद्र का पानी प्रदूषित होता है तो उसका बुरा असर समुद्री जीवन पर भी होता है। जल प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण पानी की क्वालिटी में गिरावट होती है। इसके सेवन से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं।
हकीकत तो यह है कि भारत में, खासकर ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य के निम्न स्तर का एक बड़ा कारण जल प्रदूषण ही है। प्रदूषित पानी की वजह से कॉलरा, टीबी, दस्त, पीलिया, उल्टी-दस्त जैसी बीमारियां हो सकती है। भारत में पेट के विकारों से पीड़ित 80 प्रतिशत मरीज प्रदूषित पानी पीने की वजह से बीमार हुए हैं।
भारत में जल प्रदूषण का समाधान
जल प्रदूषण का सबसे अच्छा समाधान है, इसे न होने देना। इसका सबसे प्रमुख समाधान है मिट्टी का संरक्षण। मिट्टी के कटाव की वजह से भी जल प्रदूषित होता है। ऐसे में, यदि मिट्टी का संरक्षण होता है तो हम कुछ हद तक पानी का प्रदूषण रोक सकते हैं। हम ज्यादा से ज्यादा पौधे या पेड़ लगाकर मिट्टी के कटाव को रोक सकते हैं। खेती के ऐसे तरीके अपना सकते हैं, जो मिट्टी की सेहत की चिंता करें और उसे बिगाड़ने के बजाय सुधारे। इसके साथ ही जहरीले कचरे के निपटान के सही तरीकों को अपना भी बेहद महत्वपूर्ण है। शुरुआत में, हम ऐसे उत्पादों का इस्तेमाल न या कम करें जिनमें उन्हें नुकसान पहुंचाने वाले जैविक यौगिक शामिल हो। जिन मामलों में पेंट्स, साफ-सफाई और दाग मिटाने वाले रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है, वहां पानी का सुरक्षित निपटान बेहद जरूरी है। कार या अन्य मशीनों से होने वाले तेल के रिसाव पर ध्यान देना भी बेहद जरूरी है।
यह कहा जाता है कि – कारों या मशीनों से निकलने वाला- तेल का रिसाव भी जल प्रदूषण के प्रमुख कारकों में से एक है। इस वजह से कारों और मशीनों की देखभाल बेहद जरूरी है। नियमित रूप से यह देखा जाए कि तेल का रिसाव तो नहीं हो रहा। काम पूरा होने के बाद -खासकर जिन फैक्टरियों और कारखानों में तेल का इस्तेमाल होता है- खराब तेल को साफ करन या सुरक्षित निपटान या बाद में इस्तेमाल के लिए रखने में सावधानी बरतनी जरूरी है। यहां हम नीचे कुछ तरीके बता रहे हैं, जिसके जरिए इस समस्या को दूर किया जा सकता हैः
1- पानी के रास्ते और समुद्री तटों की सफाई
2- प्लास्टिक जैसे जैविक तौर पर नष्ट न होने वाले पदार्थों का इस्तेमाल न करें
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