Par updesh kushal bahutere -is lokoti ke aadhar par kahani likiye...
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Here's the answer of your question;
पर-उपदेश के संदर्भ में एक घटना का उल्लेख किया जाता है। एक स्त्री का बालक बहुत अधिक गुड़ खाता था। वह स्त्री बालक से गुड़ खाना छुड़वाना चाहती थी। बालक उसकी बात मानता नहीं था। अतः वह एक साधु के पास पहुँची और उसे अपनी समस्या बताई। साधु ने पूरी बात सुनकर कहा कि अगले हफ्ते आना। जब वह स्त्री अगले हफ्ते बालक को लेकर साधु महाराज के पास गई तो उसने बालक को समझाया- बालक अधिक गुड़ खाना हानिकारक है, इससे दाँत खराब हो जाते हैं। यह सुनकर स्त्री बोली- इतनी सी बात तो आप इससे उस दिन भी कह सकते थे, व्यर्थ दो चक्कर कटवाए। इस पर साधु ने कहा- ‘‘ बहन, उस दिन तक मैं भी गुड़ खाता था। इस सप्ताह में मैंने गुड़ खाना छोड़ा है तभी इस बच्चे को गुड़ न खाने का उपदेश दे पाया हूँ।’’ यह उदाहरण इस बात को समझने के लिए काफी है कि उपदेश के पीछे नैतिक बल का होना आवश्यक है। पहले स्वयं व्यवहार में लाओ, फिर किसी को उपदेश दीजिए। तभी उसका अपेक्षित प्रभाव पड़ सकेगा।