परीक्षा में असफल होने पर मित्र को सहानुभूति पत्र
Answers
Letter :-
राजकीय माध्यमिक बाल विद्यालय,
रामनगर, नई दिल्ली।
दिनांक 15 जून 1992
प्रिय मित्र रमेश,
मुझे यह जानकर बहुत दुख हुआ कि तुम जब दसवीं कक्षा में अनुत्तीर्ण हो गए हो। तुम्हारे सहपाठी रवि ने बताया कि इससे तुम्हें निराशा हुई है। मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि निराश होना बेकार है। इस समय तुम्हारा कर्तव्य है, फिर से कमर कसकर भविष्य में सफलता प्राप्ति के लिए तैयार होना, नाकी निराश होकर घर के कोने में दुबक कर आंसू बहाना। किसी कवि ने कहा है “एक बार यदि सफल ना हो तो पुनः करो उद्योग।”
वह कहानी भी तुम भूले नहीं होगे कि किस प्रकार एक मकड़ी ने 10 बार गिरकर भी साहस नहीं छोड़ा था और वह ऊंची दीवार पर चढ़ने में सफल हो गई थी। दूर क्यों जाते हो, अपने जीवन के वह दिन स्मरण करो, जब तुम हिंदी और गणित में बहुत कमजोर हुआ करते थे। क्या वह दिन भूल गए, जब हमने और तुमने मिलकर प्रतिज्ञा की थी कि छमाही तक हम अपनी सारी कमजोरी दूर करके रहेंगे, नहीं तो फुटबॉल नहीं खेलेंगे। फिर मैंने और तुमने पढ़ाई में दिन रात एक कर दिए थे। छमाही में जब परिणाम निकला तो हम दोनों सब विषयों में उत्तीर्ण थे। मित्र, सच पूछो तो तुम्हें गर्व होना चाहिए कि निर्धनता और घरेलू काम का इतना भार होते हुए भी तुम विद्यालय में पढ़ने का उचित अवसर पा रहे हो। यदि कोई साधारण छात्र होता तो वह कब का हिम्मत हार चुका होता। देखते नहीं, अन्य सब विषयों में तुमने कितने अधिक अंक प्राप्त किए हैं। तुम केवल अंग्रेजी में अनुत्तीर्ण हो, वह भी केवल 5 अंकों की कमी से।
अनुत्तीर्ण होना कोई असाधारण बात नहीं है इसलिए मित्र साहस मत छोड़ो। कमर कस लो। उठो। अभी और इसी क्षण से तैयारी करना शुरु कर दो और निरीक्षण करो कि इंग्लिश विषय में तुम्हारी क्या-क्या कमियां हैं और अपनी असफलता का कारण ढूंढो। बस, फिर अपनी कमियों पर विजय पाने के लिए जुट जाओ। अगले वर्ष तुम अवश्य सफल होंगे। सफल ही नहीं, अब तुम प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होकर दिखाना।
तुम्हारा मित्र
राकेश
20/36, मेस्टन रोड
दिल्ली
दिनांक 25, 1992
प्रिय मित्र अनुज,
आज के समाचार पत्रों में परीक्षा में नकल करते हुए पकड़े जाने वालों की जो सूची छपी है, उसमें तुम्हारा नाम पढ़कर मन पर गहरा आघात लगा। तुम तो बड़े समझदार, पढ़ने वाले, परिश्रमी और अच्छे विद्यार्थी थे। जब हम पढ़ा करते थे, तो नकलचियों पर बड़ा व्यंग्य किया करते थे। तुम्हारी उन बातों को याद कर मैं आज भी, चाहकर भी नकल नहीं कर पाता और तुम हो की नकल करते हुए पकड़े गए हो। कितनी शर्म की बात है यह। लगता है, यहां से जाकर तुमने पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देना छोड़ दिया है। आवारा लड़कों की संगत करने लगे हो। यह तो अच्छी बात नहीं है मित्र। यह सब सुन तुम्हारे माता-पिता के मन पर क्या बीती होगी, जिनकी सारी तुम ही हो।
बुरा ना मानना मित्र। अब भी समय है, संभल जाओ। नकल आदमी को कुएं में ही धकेल सकती है, ऊंचा नहीं उठा सकती। अधिक क्या लिखूं? तुम स्वयं समझदार हो।
तुम्हारा शुभचिंतक मित्र
मनोज