परीक्षा में नकल के दुरपरोनाम पर अनुच्छेद लिखिए
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यूँ तो प्रत्येक परीक्षा केंद्र के बाहर बड़े-बड़े इश्तिहार लगाए जाते हैं, जिन पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा होता है- 'परीक्षा में नकल करना पाप है/ सामाजिक बुराई है।' फिर भी 'रघुकुल रीत सदा चली आई' की तर्ज पर परीक्षाओं में नकल है कि चलती ही आ रही है। यदि किसी रोज इस अपील का ऐसा असर हो जाए कि परीक्षाओं में नकल होना बिलकुल ही बंद हो जाए तो इसके कुछ गंभीर दुष्परिणाम भी हो सकते हैं।
मसलन ऐसे कई प्राइवेट स्कूलों को अपना बोरिया-बिस्तर गोल करना पड़ सकता है, जिनमें विद्यार्थी दाखिला ही इस आश्वासन के बाद लेते हैं कि उन्हें 'शर्तिया पास' करवाया जाएगा और इस गारंटी को पूरा करने के लिए 'परीक्षा केंद्र अधीक्षक' नामक प्राणी की 'पेड' सेवाएँ ली जाती हैं। दूसरी तरफ नकल बंद होने के कारण आए खराब परीक्षा परिणामों के मद्देनजर गुस्साए अभिभावकों द्वारा सरकारी स्कूलों पर, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, ताले जड़े जा सकते हैं।
सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों के इस प्रकार धड़ाधड़ बंद होने से पूरी शिक्षा व्यवस्था ही चरमरा सकती है और विद्या के इन मंदिरों में तैयार होने वाले समाज के भावी नागरिकों का प्रोडक्शन यकायक बंद हो सकता है।