परित्यक्त चीनी किले से जब हम चलने लगे, तो एक आदमी राहदारी माँगने आया
हमने वह दोनों चिटें उसे दे दी। शायद उसी दिन हम थोइला के पहले के आखिरी गाँव में
पहुँच गए। यहाँ भी सुमति के जान पहचान के आदमी थे और भिख मंगे रीते भी ठहरने
अच्छी जगह मिली। पाँच साल बाद हम इसी रास्ते लौटे थे और भिखमंगे नहीं एक भद्र यात्री
के वेश में घोड़ा पर सवार होकर आए थे, किंतु उस वक्त किसी ने हमें रहने के लिए जगह
नहीं दी, और हम गाँव के एक सबसे गरीब झोपड़े में ठहरे थे।
प्र020 आपका नाम रमेश है और आप केन्द्रीय विद्यालय भोपाल के छात्र हैं। आपके परिवार
की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। अतः आप शुल्क मुक्ति (फीस माफ) के लिए अपने
विद्यालय की प्राचार्य को पत्र लिखिये।
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Im sorry hindi ko maintindihan kay HINDI yung salita
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