Hindi, asked by chetan4222, 1 year ago

पराधीन सपनेहु सुख नाहीं पर अनुच्छेद​

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Answered by afizz
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Answer:

पराधीन सपनेहूँ सुख नाहीं :

तुलसीदास का कहना है कि जो व्यक्ति स्वाधीन नहीं होता है उसे स्वजनों से कभी भी सुख नहीं मिलता है। हमे जीवन में स्वाधीन होना चाहिए। एक मनुष्य के लिए पराधीनता अभिशाप की तरह होता है। जो व्यक्ति पराधीन होते हैं वे सपने में भी कभी सुखों का अहसास नहीं कर सकते हैं।

पराधीन व्यक्ति किसी मृत की तरह होती है। पराधीनता के लिए कुछ लोग भगवान को दोष देते हैं लेकिन ऐसा नहीं है वे स्वंय तो अक्षम होते हैं और भगवान को दोष देते रहते हैं भगवान केवल उन्हीं का साथ देता है जो अपनी मदद खुद कर सकते हैं।

पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं – इस उक्ति का अर्थ होता है कि पराधीन व्यक्ति कभी भी सुख को अनुभव नहीं कर सकता है। सुख पराधीन और परावलंबी लोगों के लिए नहीं बना है। पराधीन एक तरह का अभिशाप होता है। मनुष्य तो बहुत ही दूर है पशु-पक्षी भी पराधीनता में छटपटाने लगते हैं।

पराधीनता के समान अभिशाप कोई दूसरा नहीं हो सकता है। पराधीनता एक व्यक्ति की हो सकती है, एक परिवार की हो सकती है, या फिर देश की हो सकती है। जो व्यक्ति पराधीन होते हैं उनका कोई अस्तित्व नहीं होता है। ऐसे व्यक्तियों का कोई-भी कभी-भी कहीं-भी अपमान कर सकता है।

हमारे भारत को कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था। हमारा भारत कभी मानवता के सागर के लिए जाना जाता था। प्राचीन समय में हमारा देश सबसे उन्नत था। लेकिन कई सालों तक पराधीनता के होने की वजह से हमारे देश की स्थिति ही बदल गई है।

हमारे भारत को कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था। हमारा भारत कभी मानवता के सागर के लिए जाना जाता था। प्राचीन समय में हमारा देश सबसे उन्नत था। लेकिन कई सालों तक पराधीनता के होने की वजह से हमारे देश की स्थिति ही बदल गई है।भारत आज के समय में दुर्बल, निर्धन और सिकुडकर रह गया है। स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए कई महान लोगों ने अपने प्राणों को त्याग दिया था। लेकिन स्वाधीन होने के कई सालों बाद भी मानसिक रूप से हम अभी तक स्वाधीन नहीं हो पाए हैं। हमने विदेशी संस्कृति, विदेशी भाषा को अपनाकर अपने आपको आज तक मानसिक पराधीनता से परिचित करवा रही है।

पराधीनता के कारण विकास अवरुद्ध : जो व्यक्ति पराधीन होते हैं उनकी मानसिक, बौद्धिक और सामाजिक विकास की गति अवरुद्ध हो जाती है। जो व्यक्ति पराधीन होते हैं उनके स्वाभिमान को कदम-कदम पर चोट पहुंचाई जाती है।

Answered by brainlystar4660
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Answer:

तुलसीदास का कहना है कि जो व्यक्ति स्वाधीन नहीं होता है उसे स्वजनों से कभी भी सुख नहीं मिलता है। हमे जीवन में स्वाधीन होना चाहिए। एक मनुष्य के लिए पराधीनता अभिशाप की तरह होता है। जो व्यक्ति पराधीन होते हैं वे सपने में भी कभी सुखों का अहसास नहीं कर सकते हैं।

जब व्यक्ति के पास सभी भोग-विलासों और भौतिक सुखों के होने के बाद भी अगर वो स्वतंत्र नहीं है तो उस व्यक्ति के लिए ये सब व्यर्थ होता है। पराधीनता एक मनुष्य के लिए बहुत ही कष्टदायक होती है। इस संसार में पराधीनता को पाप माना गया है और स्वाधीनता को पुण्य माना गया है।

पराधीन व्यक्ति किसी मृत की तरह होती है। पराधीनता के लिए कुछ लोग भगवान को दोष देते हैं लेकिन ऐसा नहीं है वे स्वंय तो अक्षम होते हैं और भगवान को दोष देते रहते हैं भगवान केवल उन्हीं का साथ देता है जो अपनी मदद खुद कर सकते हैं।

Explanation:

पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं – इस उक्ति का अर्थ होता है कि पराधीन व्यक्ति कभी भी सुख को अनुभव नहीं कर सकता है। सुख पराधीन और परावलंबी लोगों के लिए नहीं बना है। पराधीन एक तरह का अभिशाप होता है। मनुष्य तो बहुत ही दूर है पशु-पक्षी भी पराधीनता में छटपटाने लगते हैं।

पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं – इस उक्ति का अर्थ होता है कि पराधीन व्यक्ति कभी भी सुख को अनुभव नहीं कर सकता है। सुख पराधीन और परावलंबी लोगों के लिए नहीं बना है। पराधीन एक तरह का अभिशाप होता है। मनुष्य तो बहुत ही दूर है पशु-पक्षी भी पराधीनता में छटपटाने लगते हैं।पराधीन व्यक्ति के साथ हमेशा शोषण किया जाता है। पराधीनता की कहानी किसी भी देश, जाति या व्यक्ति की हो वह दुःख की कहानी होती है। पराधीन व्यक्ति का स्वामी जैसा व्यवहार चाहे वैसा व्यवहार उसके साथ कर सकता है।

पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं – इस उक्ति का अर्थ होता है कि पराधीन व्यक्ति कभी भी सुख को अनुभव नहीं कर सकता है। सुख पराधीन और परावलंबी लोगों के लिए नहीं बना है। पराधीन एक तरह का अभिशाप होता है। मनुष्य तो बहुत ही दूर है पशु-पक्षी भी पराधीनता में छटपटाने लगते हैं।पराधीन व्यक्ति के साथ हमेशा शोषण किया जाता है। पराधीनता की कहानी किसी भी देश, जाति या व्यक्ति की हो वह दुःख की कहानी होती है। पराधीन व्यक्ति का स्वामी जैसा व्यवहार चाहे वैसा व्यवहार उसके साथ कर सकता है।पराधीन व्यक्ति कभी भी अपने आत्म-सम्मान को सुरक्षित नहीं रख पाते हैं। जिस सुख को स्वतंत्र व्यक्ति अनुभव करता है उस सुख को पराधीन व्यक्ति कभी भी नहीं कर सकता। हितोपदेश में भी कहा गया है कि पराधीन व्यक्ति एक मृत के समान होता !

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