पराधीन सपनेहुँ सुख नहीं पे निबंध in 150 words
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पराधीन मनुष्य की वही स्थिति होती है जो किसी पिंजड़े में बंद पक्षी की होती है जिसे खाने-पीने की समस्त सामग्री उपलब्ध है परंतु वह उड़ने के लिए स्वतंत्र नहीं है । हालाँकि मनुष्य की यह विडंबना है कि वह स्वयं अपने ही कृत्यों के कारण पराधीनता के दुश्चक्र में फँस जाता है ।
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